माधव मंत्री बर्थडे : भारतीय क्रिकेट के ‘सख्त मास्टर’ जो सुनील गावस्कर के अंकल थे

नई दिल्ली, 1 सितंबर . भले ही उन्होंने केवल चार टेस्ट मैच विकेटकीपर-बल्लेबाज के रूप में खेले. टेस्ट में कभी शतक नहीं लगाया. उनका अंतर्राष्ट्रीय करियर बहुत छोटा था. 1951 से 1955 के बीच उनके आंकड़े भी साधारण रहे. लेकिन कुछ खिलाड़ी अपने आंकड़ों से बहुत बड़े होते हैं. भारत के ऐसे ही एक क्रिकेटर थे माधव मंत्री जो एक ओपनिंग बल्लेबाज और विकेटकीपर थे. लीजेंडरी सुनील गावस्कर उनके भतीजे हैं. माधव कृष्णजी मंत्री का जन्म 1 सितंबर को महाराष्ट्र के नासिक में हुआ था.

1950 का वह दशक था जब भारतीय टीम में माधव से बेहतर खिलाड़ी मौजूद थे. इसलिए वह टीम में खुद को स्थापित नहीं कर सके थे. उन्होंने 1952 में इंग्लैंड और 1954-55 में पाकिस्तान का दौरा किया. 1952 में लॉर्ड्स के पहले टेस्ट में विकेटकीपर के तौर पर उनकी सबसे अच्छी परफॉर्मेंस रही, जब उन्होंने तीन कैच और एक स्टंप किया.

उनका रिकॉर्ड भारत के लिए साधारण था, लेकिन रणजी ट्रॉफी में वह लगातार खेलते रहे. उन्होंने रणजी ट्रॉफी में 25 साल के लंबे क्रिकेट करियर में 50.67 की औसत के साथ 2787 रन बनाए थे. उनका पूरा फर्स्ट क्लास करियर 95 मैचों तक चला, जिसमें 33.86 की औसत के साथ 4403 रन बनाए थे.

हालांकि ये आंकड़े भी बहुत ज्यादा प्रभावशाली नहीं लगते. एक समय ऐसा था, जब लगता था कि उनकी प्रसिद्धि उनके भतीजे सुनील गावस्कर की वजह से है. फिर भी माधव मंत्री भारतीय क्रिकेट में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे. इतने लंबे के बाद भी माधव की अपनी एक अलग पहचान है. खासकर मुंबई (तब बांबे) पर उनकी छाप अमिट है. वह मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष, 1964-68 के बीच चार साल के लिए राष्ट्रीय चयनकर्ता, 1990 में भारतीय टीम के इंग्लैंड दौरे पर मैनेजर, और 1990 से 1992 तक बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष भी रहे. उन्होंने खिलाड़ियों और प्रशासकों को सलाह दी, आलोचना की, कोचिंग की और अपनी अंतिम सांस तक यही करते रहे.

क्रिकेट उनके लिए जुनून था, और मुंबई क्रिकेट उनके लिए एक मिशन. 1950 से 1980 के दशक के बीच, क्लब क्रिकेट बहुत जोश और जुनून के साथ खेला जाता था, जहां खिलाड़ियों से बेहतर प्रदर्शन और अनुशासन की उम्मीद की जाती थी.

मंत्री के क्लब, दादर यूनियन की शिवाजी पार्क जिमखाना के बीच जबरदस्त प्रतिद्वंद्विता थी. यह न केवल मुंबई क्रिकेट की कहानियों का हिस्सा है, बल्कि ‘बॉम्बे स्कूल’ की नींव भी यही से पड़ी. ‘बॉम्बे स्कूल’…..जिसके मुताबिक, खिलाड़ियों को सख्त, और अनुशासन में कठोर होना जरूरी था, जैसे कि मंत्री खुद थे. अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी. उनके तहत खेलने वाले मिजाजी खिलाड़ी को भी अनुशासन में बंधना पड़ता था. चाहे खिलाड़ी कितना भी प्रतिभाशाली क्यों न हो, अगर वह माधव की टीम में है तो अनुशासनहीनता के लिए कोई जगह नहीं थी. यह थे ‘बॉम्बे स्कूल’ के बुनियादी सिद्धांत जिनको स्थापित करने में मंत्री ने अहम भूमिका निभाई.

एक किस्सा बताया जाता है. सुनील गावस्कर जब छोटे थे, उन्होंने एक बार अपने अंकल माधव की इंडिया की कैप पहन ली थी, तब उन्हें तुरंत डांट पड़ी. ‘लिटिल मास्टर’ को बताया गया कि इस कैप को कमाना पड़ता है. एक बार गावस्कर की टीम ने 1 विकेट पर 400 रन बनाए थे. गावस्कर ने अपने अंकल को यह बात बताई लेकिन उन्हें कड़ी फटकार पड़ी. कारण था कि इकलौता विकेट तब जो गिरा था वह गावस्कर का ही था. ये कुछ ऐसी चीजें थी जो उन्होंने पूरी जिंदगी अपनाई थी और 23 मई 2014 को मुंबई में इसी विरासत के साथ दुनिया को अलविदा कह दिया.

एएस/केआर