लॉरेंस हार्वे: वह कलाकार जिसकी जिंदगी फिल्मों की पटकथा जैसी! इसमें मिस्ट्री, रोमांस और ट्रेजेडी भी

New Delhi, 24 नवंबर . यह कहानी एक ऐसे Actor की है जिसने ग्लैमर की दुनिया में कदम रखा तो पर्दे पर चमक बिखेर दी, लेकिन बंद दरवाजों के पीछे जिंदगी उसकी कमजोरियों और जंगों से भरी रही. लिथुआनिया में ज्वी मोशेह स्किकने नाम से जन्मा एक यहूदी बच्चा, जिसने दूसरे विश्वयुद्ध के खौफ के बीच अपना घर छोड़ा और पहचान की तलाश उसे दक्षिण अफ्रीका से होते हुए इंग्लैंड ले आई. वहीं वह लॉरेंस हार्वे बन गया, एक ऐसा नाम जो भविष्य में ब्रिटिश सिनेमा में अपनी खास पहचान बनाने वाला था.

हार्वे के पास चेहरा था, आवाज थी, और उन आंखों में एक पल में ठंडा और अगली सांस में संवेदनशील हो जाने वाली चमक थी. लोग कहते थे कि वह दर्शकों से, किरदारों से और कभी-कभी शायद खुद अपनी भावनाओं से भी अलग खड़े दिखाई देते थे. लेकिन यही रहस्य, यही बेरुखी उनकी ताकत बनी. 1959 में आई फिल्म ‘रूम एट द टॉप’ ने उन्हें रातों-रात अंतरराष्ट्रीय सितारा बना दिया. इस किरदार के लिए उन्हें ऑस्कर नामांकन मिला. इसके बाद ‘द मंचुरियन कैंडिडेट’ में जो अदायगी की वह उन्हें सदाबहार क्लासिक Actor की श्रेणी में ले आई. ऐसा लगा जैसे वह कैमरे से नहीं, दर्शकों के दिल के सबसे असुरक्षित कोनों से संवाद कर रहे हों.

शोहरत के साथ उनकी प्रेम कहानियां भी सुर्खियों में रहने लगीं. उनकी जिंदगी में रोमांस भरपूर था. कभी किसी की नजरों में बेहद मोहक तो कभी पूरी तरह दूर—हार्वे का व्यक्तित्व लोगों को खींच भी लेता था और उलझा भी देता था. इंडस्ट्री में उन्हें लेकर दो तरह की राय थीं: कुछ लोग एक महान कलाकार मानते थे, तो कुछ कहते थे कि वह इतना तेज चमके कि उनके भीतर से गर्माहट गायब हो गई. लेकिन उनकी फिल्मों के किरदार बताने लगे कि वह जीवन को भीतर तक महसूस करते हैं, भले ही दुनिया के सामने उन भावनाओं पर परदा डाल देते हों.

कामयाबी के बावजूद उनकी निजी लड़ाइयां कम न थीं. इंडस्ट्री का दबाव, रिश्तों की उथल-पुथल और अपनी जड़ों से दूरी ने उन्हें लगातार भीतर से चोट पहुंचाई. वह सिर्फ एक स्टार नहीं, बल्कि एक जटिल आत्मा थे जो दुनिया के सामने चमकता हुआ दिखता था, लेकिन अंदर अकेलेपन से जूझता था. शायद इसी विरोधाभास ने उन्हें और दिलचस्प बना दिया—एक ऐसा कलाकार जो अपने हर किरदार में खुद को तलाशता रहा.

सिर्फ 45 साल की उम्र में कैंसर ने उनकी कहानी को अचानक रोक दिया. 25 नवंबर 1973 को उनका शांत, रहस्यमय चेहरा हमेशा के लिए पर्दे के पीछे चला गया. लेकिन मौत उनकी चमक को मिटा न पाई.

लॉरेंस हार्वे की जिंदगी किसी फिल्म से कम नहीं थी—संघर्षों से शुरुआत, ग्लैमर की बुलंदियां, प्रेम और उलझनें, चमक और अंधेरा, और फिर अचानक काला परदा! ब्रिटिश फिल्मों में कई नायकों की कहानियां लिखी गईं, लेकिन उनकी कहानी में जो बांकपन था, जो आकर्षण था, वह दशकों बाद भी प्रशंसकों को रूमानी बना जाता है.

केआर/