लांस नायक करम सिंह: साहस और देशभक्ति की अमर कथा

New Delhi, 14 सितंबर . लांस नायक करम सिंह पंजाब की माटी से निकले उन अनगिनत योद्धाओं में से एक थे, जिन्होंने देश की रक्षा में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया. उनकी वीरता की गाथा न केवल 1947-48 के भारत-पाक युद्ध में तिथवाल की लड़ाई में गूंजी, बल्कि आज भी हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की अलख जगाती है.

लांस नायक करम सिंह पंजाब का जन्म 15 सितंबर 1915 को पंजाब के बरनाला जिले के एक किसान परिवार में हुआ था. बचपन से ही वे मजबूत इच्छाशक्ति वाले थे. छह साल की उम्र में उन्हें स्कूल भेजा गया, लेकिन पढ़ाई में उनकी रुचि कम थी. इसलिए, उनके पिता ने उन्हें खेतों में काम पर लगा दिया.

युवावस्था में वे मजदूरी करने लगे. हालांकि, वे पिता की तरह किसान ही बनना चाहते थे. भविष्य में आगे क्या करना है, उन्होंने इसके बारे में नहीं सोचा था. हालांकि, किसी ने तब यह नहीं सोचा था कि किसान बनने की रूचि रखने वाला यह लड़का एक दिन दुश्मन देश Pakistan के दांत खट्टे कर देगा.

15 सितंबर 1941 का वो दिन जब करम सिंह भारतीय सेना में भर्ती हुए. सेना में रहते हुए उन्होंने अपनी बहादुरी का परिचय कई बार दिया था. लेकिन, 13 अक्टूबर 1948 की तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई. Pakistan के साथ इस युद्ध में उन्होंने दुश्मन देश की नापाक हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया. कहा जाता है कि इस युद्ध में जब उनके पास गोलियां खत्म हो गईं तो उन्होंने फिर भी हार नहीं मानी और खंजर से दुश्मन पर हमला कर उन्हें खदेड़ दिया, जिसमें कई Pakistanी सैनिक मारे गए. उनके इस साहस ने दुश्मन को इतना हतोत्साहित किया कि वे पीछे हट गए.

लांस नायक करम सिंह की इस वीरता के लिए साल 1950 में उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया. वे यह सम्मान प्राप्त करने वाले दूसरे योद्धा थे.

सेना से रिटायर होने के बाद वे अपने गांव लौट आए. उन्होंने अपने परिवार के साथ बाकी का समय गुजारा.

करम सिंह की यह गाथा पंजाब के गौरव और देश की सेवा में उनके बलिदान को अमर बनाती है. उनकी कहानी युवाओं को सिखाती है कि साहस और समर्पण से कोई भी चुनौती छोटी हो जाती है.

डीकेएम/डीएससी