अखाड़ों में सुरक्षा और अनुशासन की जिम्मेदारी कोतवाल की : महंत दुर्गादास

प्रयागराज, 26 नवंबर . अर्ध कुंभ और कुंभ मेले के दौरान जहां लाखों लोग एकत्रित होते हैं, वहां अखाड़ों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है. इन अखाड़ों के अंदर एक विशेष पद होता है, जिसे कोतवाल या थानापति कहा जाता है. इस पद की जिम्मेदारी को समझना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह व्यक्ति न केवल अखाड़े के अनुशासन और सुरक्षा की निगरानी करता है, बल्कि इसके प्रमुख कर्तव्यों में अखाड़े के देवता और धर्म ध्वजा की रक्षा करना भी शामिल है.

अखाड़े के अंदर अनुशासन बनाए रखने और सुरक्षा की जिम्मेदारी थानापति या कोतवाल की होती है. यह पद किसी भी थानेदार के समान है, जिसमें उन्हें अखाड़े की देखभाल और निगरानी का जिम्मा सौंपा जाता है. इनकी भूमिका की अहमियत को समझते हुए, खासतौर पर अर्ध कुंभ और कुंभ मेले में उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है. यह आयोजन बड़े पैमाने पर होते हैं और यहां आए साधु-संतों से लेकर अन्य श्रद्धालुओं की सुरक्षा और अनुशासन बनाए रखना अत्यंत जरूरी होता है.

अखाड़ों के पंच परमेश्वर, जो अखाड़े के प्रमुख होते हैं, कोतवाल की नियुक्ति करते हैं. पंच परमेश्वर के निर्देश पर ही कोतवाल का चयन किया जाता है और यह नियुक्ति विशेष परंपराओं का पालन करते हुए की जाती है. उनके ड्रेस कोड में एक शॉल शामिल होता है, जो उन्हें खास पहचान देता है, साथ ही एक चांदी का दंड भी उनके पास होता है, जो इस पद की विशेषता का प्रतीक है. कोतवाल का एक महत्वपूर्ण कार्य धर्म ध्वजा और अखाड़े के ईष्ट देव की रक्षा करना है. अखाड़े के अंदर सुरक्षा बनाए रखने और अनुशासन कायम रखने के लिए कोतवाल का दायित्व बड़ा होता है. उनका काम यह सुनिश्चित करना होता है कि अखाड़े में कोई भी नियमों का उल्लंघन न करे और जो भी साधु-संत या श्रद्धालु वहां आएं, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.

अखाड़े के महंतों के अनुसार, कोतवाल की तैनाती और उसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है. महंत बताते हैं कि अखाड़े की छावनी की सुरक्षा और आस्था का मुख्य ध्यान रखने वाला व्यक्ति कोतवाल ही होता है. उनके कार्यों में न केवल अनुशासन का पालन कराना होता है, बल्कि हर श्रद्धालु और साधु-संत के भव्य और सुरक्षित प्रवास को सुनिश्चित करना भी उनकी जिम्मेदारी होती है.

अखाड़ा उदासीन निर्वाणी अखाड़ा के महंत दुर्गादास जी बताते हैं कि अखाड़ों में कोतवाल की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. कोतवाल की अपनी अलग पहचान होती है, और उनका मुख्य कार्य धर्म, ध्वजा और पूरे छावनी की सुरक्षा सुनिश्चित करना होता है. वह यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी बहुरुपिया अखाड़े में प्रवेश न करे और इसकी पहचान भी उनके पास होती है. अगर कोई समस्या उत्पन्न होती है, तो वे ही सूचना देते हैं और उसके आधार पर ही कार्रवाई की जाती है. इस तरह कोतवाल की भूमिका काफी अहम होती है.

उन्होंने आगे कहा कि कोतवाल की चयन प्रक्रिया अखाड़े के पंच परमेश्वर द्वारा की जाती है. पंच परमेश्वर वही संत चुनते हैं, जो हर दृष्टि से परिपूर्ण हों और जिनके पास सभी प्रकार की जानकारी हो. उन्हीं संतों को कोतवाल की जिम्मेदारी दी जाती है. हालांकि, कोतवाल को दंड देने का अधिकार नहीं होता, क्योंकि दंड का प्रावधान पंच परमेश्वर के पास होता है. अगर कोतवाल के द्वारा कोई शिकायत आती है, तो पंच परमेश्वर उस पर विचार-विमर्श करके उचित दंड देते हैं. कोतवाल की पहचान उनके विशेष वेशभूषा से होती है. उनके हाथ में चांदी का दंड होता है और उनके पास शॉल भी होता है, जो उनके पद की पहचान को स्पष्ट करता है. उनके वेशभूषा से ही पता चलता है कि वे कोतवाल हैं.

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