जानिए, दिल्ली शराब घोटाले पर कैग रिपोर्ट में हुए क्या-क्या खुलासे

नई दिल्ली, 25 फरवरी . दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने शराब नीति से जुड़ी कैग की रिपोर्ट प्रस्तुत की. विधानसभा के पटल पर रखी गई इस कैग रिपोर्ट के मुताबिक, आम आदमी पार्टी (आप) की तत्कालीन सरकार ने नई शराब नीति में कई तरह की गड़बड़ियां की, जिसके चलते दिल्ली सरकार को करीब 2,002.68 करोड़ रुपये का घाटा हुआ.

कैग रिपोर्ट के सामने आने के बाद दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया समेत आम आदमी पार्टी (आप) के कई नेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. दिल्ली के शराब घोटाले के मामले में अरविंद केजरीवाल, सिसोदिया समेत कई नेता आरोपी बनाए गए हैं. दोनों नेता कई महीनों तक दिल्ली की तिहाड़ जेल में रह चुके हैं. फिलहाल इस मामले की जांच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कर रही है.

कैग रिपोर्ट में शराब घोटाले को लेकर क्या कुछ है…

1- राजस्व हानि – 2,002.68 करोड़ रुपये-

गैर-अनुपालन क्षेत्रों में शराब की दुकानें न खोलने से 941.53 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

त्यागे गए लाइसेंसों की दोबारा नीलामी न करने से 890 करोड़ रुपये की हानि हुई.

आबकारी विभाग के विरोध के बावजूद, जोनल लाइसेंसधारियों की फीस में 144 करोड़ रुपये की छूट दी गई.

सुरक्षा जमा सही से न लेने के कारण 27 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

2- लाइसेंसिंग नियमों का उल्लंघन-

दिल्ली आबकारी नियम, 2010 के नियम 35 को लागू नहीं किया गया.

वही थोक विक्रेता, जो निर्माण और खुदरा व्यापार में भी हिस्सेदारी रखते थे, को लाइसेंस दिए गए, जिससे हितों का टकराव हुआ.

पूरी शराब आपूर्ति श्रृंखला कुछ गिने-चुने कारोबारियों के हाथ में थी, जिससे बाजार पर उनका नियंत्रण हो गया.

3- थोक विक्रेताओं के मुनाफे में भारी बढ़ोतरी-

थोक विक्रेताओं का मार्जिन 5% से बढ़ाकर 12% कर दिया गया, यह कहकर कि गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाएं (क्वालिटी कंट्रोल लैब्स) बनाई जाएंगी.

कोई सरकारी स्वीकृत प्रयोगशाला (लैब) स्थापित नहीं की गई.

इस कदम से केवल थोक विक्रेताओं को फायदा हुआ और सरकार का राजस्व घट गया.

4- लाइसेंसधारियों की कमजोर जांच-

खुदरा लाइसेंस देने से पहले उनकी संपत्ति, वित्तीय स्थिति या आपराधिक रिकॉर्ड की जांच नहीं की गई.

एक जोन संचालित करने के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश आवश्यक था, लेकिन वित्तीय पात्रता की कोई शर्त नहीं रखी गई.

कई लाइसेंसधारियों की पिछले तीन वर्षों में आय शून्य या बहुत कम थी, जिससे राजनीतिक संरक्षण और प्रॉक्सी ओनरशिप की आशंका बढ़ी.

5 – विशेषज्ञों की सिफारिशों की अनदेखी-

आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने 2021-22 की नई आबकारी नीति बनाते समय अपनी ही विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया और इसका कोई उचित कारण नहीं बताया गया.

6- पारदर्शिता की कमी और शराब कार्टेल का निर्माण-

पहले एक व्यक्ति को केवल दो दुकानें संचालित करने की अनुमति थी, लेकिन नई नीति में 54 स्टोर तक चलाने की अनुमति दी गई.

इससे शराब व्यापार कुछ बड़े कारोबारियों के हाथों में चला गया, जिससे प्रतिस्पर्धा कम हो गई.

849 शराब दुकानों के लिए सिर्फ 22 निजी संस्थाओं को लाइसेंस दिए गए, जिससे बाजार में मोनोपॉली (एकाधिकार) बन गई.

7- मोनोपॉली और ब्रांड प्रमोशन को बढ़ावा-

नई नीति के तहत निर्माताओं को केवल एक ही थोक विक्रेता से जुड़ने के लिए मजबूर किया गया, जिससे प्रतिस्पर्धा कम हो गई.

सिर्फ तीन थोक विक्रेता (इंडोस्प्रीट, महादेव लिकर और ब्रिंडको) 71% शराब आपूर्ति को नियंत्रित कर रहे थे.

ये तीनों थोक विक्रेता 192 ब्रांड्स की एक्सक्लूसिव सप्लाई के अधिकार रखते थे, जिससे ग्राहकों के पास कम विकल्प बचे और शराब की कीमतें बढ़ीं.

8 – कैबिनेट प्रक्रिया का उल्लंघन-

मुख्य छूट और रियायतें बिना कैबिनेट की मंजूरी के दी गईं.

उपराज्यपाल (एलजी) से कोई परामर्श नहीं लिया गया, जिससे कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ.

9- अवैध रूप से शराब की दुकानें खोलना-

रिहायशी और मिश्रित उपयोग वाले क्षेत्रों में एमसीडी और डीडीए की मंजूरी के बिना शराब की दुकानें खोल दी गईं.

जोन-23 में 4 शराब की दुकानें गलत तरीके से व्यावसायिक क्षेत्र घोषित की गईं, जिससे 2022 में एमसीडी ने इन्हें सील कर दिया.

10- शराब की कीमतों में हेरफेर-

आबकारी विभाग ने एल 1 लाइसेंसधारियों को एक्स-डिस्टलरी प्राइस (ईडीपी) निर्धारित करने की अनुमति दी, जिससे शराब की कीमतें कृत्रिम रूप से बढ़ गईं.

11- शराब की गुणवत्ता परीक्षण में गड़बड़ी

गुणवत्ता परीक्षण रिपोर्ट के बिना ही शराब बेचने की अनुमति दी गई.

कुछ परीक्षण रिपोर्टें गैर-एनएबीएल प्रमाणित प्रयोगशालाओं से ली गईं, जिससे एफएसएसएआई मानकों का उल्लंघन हुआ.

51% विदेशी शराब मामलों में रिपोर्ट या तो पुरानी थी, गायब थी, या उस पर कोई तारीख ही नहीं थी.

भारी धातुओं और मिथाइल अल्कोहल जैसी हानिकारक चीजों की उचित जांच नहीं हुई, जिससे स्वास्थ्य खतरा बढ़ा.

12- शराब की तस्करी पर कमजोर कार्रवाई-

आबकारी खुफिया ब्यूरो (ईआईबी) ने शराब तस्करी रोकने के लिए कोई सक्रिय कदम नहीं उठाए.

जब्त शराब का 65 प्रतिशत देसी शराब थी, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.

एफआईआर में कुछ इलाकों में बार-बार तस्करी के मामले सामने आए, लेकिन सरकार ने इस पर कोई सख्त कदम नहीं उठाया.

13- खराब डेटा प्रबंधन से अवैध व्यापार को बढ़ावा-

आबकारी विभाग के पास असंगठित रिकॉर्ड थे, जिससे राजस्व नुकसान और तस्करी के पैटर्न को ट्रैक करना असंभव था.

ब्रांड विकल्पों की कमी और शराब की बोतल के आकार की पाबंदियों के कारण अवैध शराब व्यापार बढ़ गया.

14- नीति का उल्लंघन करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं-

‘आप’ सरकार ने आबकारी कानूनों का उल्लंघन करने वाले लाइसेंसधारियों पर कोई दंड नहीं लगाया.

शो-कॉज़ नोटिस खराब तरीके से तैयार किए गए, जिससे प्रवर्तन कमजोर हो गया.

आबकारी छापेमारी मनमाने ढंग से की गई, जिससे कार्यान्वयन प्रभावी नहीं रहा.

15- सुरक्षा लेबल परियोजना की विफलता और पुरानी तकनीकों का उपयोग-

शराब की सत्यता सुनिश्चित करने और छेड़छाड़ रोकने के लिए प्रस्तावित ‘एक्साइज एडेसिव लेवल’ परियोजना लागू नहीं हुई.

आधुनिक डेटा एनालिटिक्स और एआई का उपयोग करने के बजाय, आबकारी विभाग ने पुरानी ट्रैकिंग विधियों पर निर्भर किया.

एसके/एबीएम