जानिए, वन्य जीवों को एक राज्य से दूसरे राज्य ले जाने के लिए सेंट्रल जू अथॉरिटी किस प्रोग्राम के तहत करती है काम

नई दिल्ली, 18 सितंबर . कभी ना कभी आप भी चिड़ियाघर गए होंगे. यहां आपने कई प्रजाति के जीवों जैसे हाथी, चीता, बाघ, तेंदुआ, शेर को देखा होगा. इसके अलावा छोटे प्रजाति के वन्यजीव हिरण, पेंटेंड स्टॉर्क जैसे जीव भी देखे होंगे.

लेकिन, क्या आपको पता है कि जिन वन्यजीवों को आप चिड़ियाघर में देखकर खुश हो रहे हैं, उन्हें कई बार एक प्रोग्राम के तहत दूसरे राज्यों के चिड़ियाघर में शिफ्ट कर दिया जाता है. ऐसा क्यों किया जाता है और किस प्रोग्राम के तहत वन्यजीवों को शिफ्ट किया जाता है. इसे विस्तार से समझते हैं.

देशभर के चिड़ियाघरों पर होने वाली गतिविधियों पर सेंट्रल जू अथॉरिटी की नजर होती है. किस राज्य के चिड़ियाघर से कौन से वन्यजीवों को दूसरे राज्य के चिड़ियाघर में शिफ्ट करना है, इसकी पूरी जिम्मेदारी सेंट्रल जू अथॉरिटी के अधीन होती है. अथॉरिटी के ग्रीन सिग्नल के बाद ही एक्सचेंज प्रोग्राम किया जाता है. इस प्रोग्राम के तहत एक राज्य के चिड़ियाघरों से दूसरे राज्य के चिड़ियाघरों को वन्यजीव का आदान-प्रदान किया जाता है.

सवाल यह है कि ऐसा क्यों किया जाता है. इसका जवाब यह है कि वन्यजीवों की संख्या के संतुलन को बनाए रखने के लिए ऐसा किया जाता है. साथ ही कई बार चिड़ियाघरों में कई जीव(नर-मादा) ऐसे होते हैं, जो सालों साल से अकेले रह रहे हैं, उनका जोड़ा नहीं होता है. उनके अकेले रहने से उस चिड़ियाघर में वह प्रजाति खत्म हो सकती है. इसके अलावा चिड़ियाघर में सभी प्रजाति के वन्यजीव मौजूद हों. यह वजह भी है कि एक्सचेंज प्रोग्राम कराया जाता है.

इसलिए, समय-समय पर चिड़ियाघरों के निदेशकों के द्वारा एक्सचेंज प्रोग्राम चलाया जाता है. जू निदेशक इस संबंध सेंट्रल जू अथॉरिटी को पत्र लिखते हैं. इस पत्र में कौन सा जीव चाहिए. इसकी पूरी एक लिस्ट दी जाती है.

इस लिस्ट पर सेंट्रल जू अथॉरिटी संज्ञान लेती है और दूसरे राज्यों से इस संबंध में चर्चा करती है. दूसरे राज्य का चिड़ियाघर अपने यहां से जीव देने के लिए तैयार हो जाते हैं तो सेंट्रल जू अथॉरिटी एक्सचेंज प्रोग्राम को हरी झंडी दिखाती है.

इसके लिए एक समय सीमा तय की जाती है. अगर समय सीमा में एक्सजेंच प्रोग्राम नहीं होता है तो दोबारा से प्रोग्राम को रिशेड्यूल करना होता है.

एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत दूसरे राज्यों से लाए गए वन्यजीवों को करीब 2 सप्ताह तक पशु चिकित्सक की निगरानी में रखा जाता है.

यहां टीकाकरण किया जाता है. जानकार बताते हैं कि एक राज्य से दूसरे राज्य के चिड़ियाघरों में खुद को एडजस्ट करने में वन्यजीवों को थोड़ा समय लगता है.

सितंबर से लेकर नवंबर माह तक एक्सचेंज प्रोग्राम में काफी तेजी देखने को मिलती है क्योंकि, इस प्रोग्राम के लिए यही अनुकूल समय है. ज्यादा गर्मी और ज्यादा सर्दी में इस प्रोग्राम को नहीं किया जाता है. जानकार बताते हैं कि इससे वन्यजीवों को खतरा हो सकता है.

दूसरे राज्यों से वन्यजीवों को लाने के लिए बकायदा एक पूरी टीम बनाई जाती है. जिसमें पशु चिकित्सक के अलावा, जू कीपर भी होते हैं.

डीकेएम/जीकेटी