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New Delhi, 24 अक्टूबर . हिंदू धर्म में प्रकृति और इसके सभी जीवों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का विशेष महत्व है. गाय, कछुआ, सर्प आदि के पूजन का विशेष महत्व है. वहीं, दक्षिण India में सर्प पूजा की जाती है, जिसे ‘नागुला चौथी’ कहते हैं.
यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि और दीपावली के चौथे दिन की जाती है. मान्यता है कि कई लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं, जिसे अनंत, वासुकि और शेषनाग सहित 12 नागों को समर्पित किया जाता है. इस तिथि को आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे दक्षिण India के कुछ प्रमुख राज्यों में जगह-जगह व्रत और अनुष्ठान किए जाते हैं. लोग यहां नागदेवताओं की मूर्तियां स्थापित करके उनकी पूजा करते हैं.
ऐसी मान्यता है कि चीटियों की पहाड़ियों पर नाग देवताओं का भी वास होता है. इस दिन लोग चींटियों की पहाड़ियों पर आकर दूध चढ़ाते हैं और मिठाई अर्पित करते हैं.
नागुला चौथी से जुड़ी दो पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. पहली कथा के अनुसार, जब देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन किया, तो उस दौरान सर्पराज वासुकि को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया था, जिसमें हलाहल विष निकला, जिसे भगवान शिव ने समस्त संसार की रक्षा के लिए ग्रहण किया. इससे उनका कंठ नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ कहा गया.
माना जाता है कि इस विष की एक बूंद धरती पर गिर गई थी. इस विष के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए मानवजाति ने सर्पों की पूजा शुरू की, जिससे नागुला चौथी पर्व की शुरुआत हुई.
एक दूसरी पौराणिक कथा भी प्रचलित है, जिसमें राजा जन्मेजय और नाग देवताओं की कहानी बताई गई है.
कथा के अनुसार, एक बार राजा जन्मेजय ने नाग जाति के विनाश के लिए सर्पमेध यज्ञ का आयोजन किया था. इस यज्ञ के प्रभाव से सभी सर्प और नाग यज्ञ की ओर खींचे चले आए थे. वहीं, नागराज तक्षक ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए देवताओं से मदद मांगी. मगर यज्ञ की शक्ति इतनी प्रबल थी कि इंद्र सहित अन्य देवता भी यज्ञ की ओर खिंचे जाने लगे थे.
भय से देवता और सर्पों ने ब्रह्माजी से सहायती मांगी. उन्हें ब्रह्माजी ने मनसा देवी के पुत्र अस्तिका से सहायता लेने की सलाह दी. मनसा देवी की आज्ञा पर अस्तिका ने सर्पमेध यज्ञ को रोक दिया और सभी नागों व देवताओं की रक्षा की. यह घटना नाग चतुर्थी के दिन हुई थी. तब से मनसा देवी ने आशीर्वाद दिया कि जो भी इस दिन सर्पों की पूजा करेगा और इस कथा का श्रवण करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी.
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एनएस/एबीएम