New Delhi, 16 अक्टूबर . कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष को रमा एकादशी का व्रत रखा जाएगा. इस दिन जातक व्रत रखकर भगवान विष्णु की अराधना करते हैं. मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से अनजान में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है.
रमा एकादशी की महिमा का उल्लेख ब्रह्म-वैवर्त पुराण और पद्म पुराण में मिलता है, जहां भगवान श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर के संवाद के माध्यम से इसके महत्व को बताया गया है.
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार पांडव राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कार्तिक मास की एकादशी का महत्व पूछा. श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा, “हे राजन, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहते हैं. यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है.”
भगवान ने एकादशी को लेकर कथा सुनाई. उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में राजा मुचुकुंद भगवान विष्णु के परम भक्त और सत्यनिष्ठ शासक थे, वह अपने राज्य में रमा एकादशी का व्रत अनिवार्य रूप से करवाते थे. उनके राज्य में सभी लोग इस दिन निर्जला व्रत रखते और भगवान की भक्ति में लीन रहते. मुचुकुंद की पुत्री चंद्रभागा का विवाह राजकुमार शोभन से होता है, जो शारीरिक रूप से कमजोर होता है. फिर भी, शोभन ने ससुर के नियम और अपनी भक्ति के बल पर रमा एकादशी का व्रत रखा. कठिन व्रत के कारण द्वादशी के दिन पारण से पहले उनकी मृत्यु हो गई. चंद्रभागा दुखी हुई, लेकिन उसका भगवान पर विश्वास अटल रहा. वहीं, भगवान विष्णु ने शोभन की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अगले जन्म में मंदराचल पर्वत का राजा बनाया. जब राजा मुचुकुंद ने अपने दामाद को राजा के रूप में देखा, तो चंद्रभागा को यह समाचार दिया. चंद्रभागा ने भी रमा एकादशी का व्रत रखा और पुण्य प्राप्त किया. अंततः वह अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहने लगीं.
रमा एकादशी केवल व्रत नहीं, बल्कि आस्था और भक्ति का पर्व है. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यह व्रत जीवन में सकारात्मकता, समृद्धि और शांति लाता है. भक्त सुबह स्नान कर, भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेते हैं और दिनभर भक्ति-भाव से पूजा करते हैं.
रमा एकादशी का व्रत हर वर्ग के लिए कल्याणकारी है. यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखाता है, बल्कि जीवन को सुखमय बनाता है.
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एनएस/एबीएम