New Delhi, 16 अगस्त . आज के समय में ज्यादा सोचने, शक करने और काम टालने की आदतें बहुत आम हो गई हैं. कई बार हम खुद को बहुत परेशान पाते हैं क्योंकि हमारा मन बार-बार बातें सोचता रहता है या हम जरूरी काम करने की बजाय टालते रहते हैं. इसे केवल आदत कहना ठीक नहीं होगा, क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार ये हमारी सेहत से जुड़ी समस्या भी हो सकती है.
चरक संहिता के मुताबिक, हमारे शरीर में तीन खास दोष होते हैं: वात, पित्त और कफ… जो हमारे मन और व्यवहार को प्रभावित करते हैं. जब ये दोष असंतुलित हो जाते हैं, तो हम ज्यादा सोचने, जल्दी गुस्सा होने, काम टालने जैसी आदतों से गुजरने लगते हैं. इस वजह से ना सिर्फ हमारा मन बल्कि हमारा शरीर भी थक जाता है. इसलिए यह समझना जरूरी है कि हमारी सोच और व्यवहार हमारे शरीर के दोषों से कैसे जुड़े हैं और इन्हें संतुलित करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं. आज बात द्वंदज विकार की. यानि दो विपरीत दोषों से मिलकर पैदा हुई दिक्कत की.
वात–पित्त दोष: जिन लोगों में वात और पित्त का दोष ज्यादा होता है, वे ज्यादा सोचते हैं और चिंता करते हैं. वे तुरंत नतीजा चाहते हैं. इससे उनका मन बेचैन और शरीर थका हुआ रहता है.
पित्त–कफ दोष: पित्त और कफ दोष वाले लोग काम में तेज शुरुआत करते हैं, लेकिन बाद में काम टालने लगते हैं. इससे उनकी कार्यक्षमता में दिक्कत आती है और वे जल्दी गुस्सा भी हो जाते हैं.
वात–कफ दोष: वात और कफ दोष वाले लोग ज्यादा सोचते हैं, पर काम कम करते हैं. वे मुश्किल काम से बचना पसंद करते हैं, जिससे उनमें आलस्य और ठहराव की स्थिति बन जाती है.
आयुर्वेद के अनुसार, केवल दवा लेना ही काफी नहीं है. हमारे दोषों को समझकर अपनी सोच और व्यवहार में सुधार करना भी जरूरी है. इससे हमारे मन और शरीर दोनों को आराम मिलता है.
इस समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले, मन को शांत रखना जरूरी है. वहीं, अपने ऊपर भरोसा रखें और निरंतर मेहनत करते रहें. इसके अलावा, सही दवा और सही सोच के साथ ही सही इलाज लें. जब हम अपने दोषों को समझकर अपनी आदतों को सुधारते हैं, तभी हम ज्यादा सोचने, शक करने और काम टालने जैसी आदतों से बाहर निकल पाते हैं.
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पीके/केआर