कस्तूरी बाई : वो कवयित्री और स्वतंत्रता सेनानी, जिन्होंने देश हित के लिए समर्पित किया जीवन

नई दिल्ली, 3 अक्टूबर . छायावाद युग के कवि माखनलाल चतुर्वेदी, जिनकी रचनाओं ने ना केवल प्रकृति-प्रेम को स्याही से पिरोने का काम किया बल्कि उनकी रचनाएं देश प्रेम का संगम बनीं. इस नाम को हर कोई जानता है, लेकिन उन्हीं के घर से देश को एक ऐसी कवयित्री और स्वतंत्रता सेनानी भी मिली, जिनके बारे में हर कोई नहीं जानता.

हम बात कर रहे हैं कस्तूरी बाई की, जिन्होंने समाज सेवा और राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लेने समेत देश हित में कई महत्वपूर्ण कार्य किए. कस्तूरी बाई, माखनलाल चतुर्वेदी की बहन थीं. उन्होंने समाज सेवा और राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. यही नहीं, वह महिला संगठन, शराब और विदेशी वस्त्रों की दुकान पर दिए गए धरने में भी शामिल रहीं. राष्ट्र सेवी परिवार में जन्म लेने के कारण कस्तूरी बाई में बचपन से ही राष्ट्रीयता के संस्कार थे.

1892 में जन्मीं कस्तूरी बाई ने अपनी अंतिम सांस 4 अक्टूबर, 1979 को ली थी. हालांकि, उन्होंने अपने जीवन में कई ऐसे नेक काम किए, जिसके कारण वो भारत के इतिहास में सदा के लिए अमर हो गईं. छोटी सी उम्र में शादी और उसके कुछ साल बाद विधवा का जीवन जी चुकी कस्तूरी बाई ने कभी हार नहीं मानी.

जब उनके पति की मृत्यु हुई, उस समय माखनलाल चतुर्वेदी भी अस्वस्थ चल रहे थे और उनकी पत्नी का निधन हो चुका था. ऐसी परिस्थिति में एक दूसरे की देखभाल और सहायता के लिए दोनों भाई-बहन साथ रहने लगे और यहीं से शुरू हुआ कस्तूरी बाई के जीवन का नया अध्याय.

इसी समय गांधी जी ने ‘असहयोग आंदोलन’ प्रारंभ कर दिया था. कस्तूरी बाई ने समाज सेवा और राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेना प्रारंभ कर दिया.

राष्ट्रीय भावना से सराबोर महिला संगठन, चरखा सिखाने की कक्षा लेना, शराब एवं विदेशी वस्त्रों की दुकान पर धरना देना आदि उनके प्रमुख कार्य थे. जुलूस का नेतृत्व करने से लेकर गिरफ्तार होकर जेल जाने तक वो हमेशा भारत के हित की लड़ाई लड़ती रहीं. जब तक उनका स्वास्थ्य अच्छा रहा, तब तक वह समाज सेवा का कार्य करती रहीं. लेकिन बढ़ती उम्र के साथ वो बीमार रहने लगीं और एक दिन ऐसा आया जब उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

एएमजे/एबीएम