धारवाड़/नवलगुंड, 9 अक्टूबर . कर्नाटक में प्याज की खेती करने वाले किसान कभी इसे अपने लिए ‘लाल सोना’ मानते थे. यह उनके लिए समृद्धि का प्रतीक माना जाता था, लेकिन अब प्याज की कीमत में आई भारी गिरावट ने उन्हें आर्थिक संकट में डाल दिया है.
कर्नाटक के धारवाड़ जिले के कुंदागोल, नवलगुंड और धारवाड़ तालुकों में प्याज की खेती बड़े पैमाने पर होती है. पिछले साल यहां प्याज 6,000 से 7,000 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकी थी, लेकिन इस साल कीमतें 500-1,000 रुपये प्रति क्विंटल तक लुढ़क गई हैं. इससे किसान मायूस हैं.
किसानों के मुताबिक, भारी बारिश के बावजूद किसानों ने महीनों की मेहनत से प्याज की कटाई और सुखाई पूरी की, लेकिन एपीएमसी यार्ड में क्विंटलों प्याज लाने के बाद भी उन्हें उचित दाम नहीं मिल रहा. सफाई, पैकिंग और बाजार तक ले जाने का खर्च मुनाफे से ज्यादा पड़ रहा है. कई गांवों से प्याज आई है, फिर भी किसानों को घाटा हो रहा है.
एक स्थानीय किसान बसवराज कहते हैं, “पिछले साल अच्छा दाम मिला था, लेकिन इस बार तो लागत भी वसूल नहीं हो रही. Government को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देना चाहिए.”
अन्य किसान निंगप्पा बताते हैं, “हमारी मेहनत पर पानी फिर गया. निर्यात की अनुमति मिले, ताकि दाम बढ़ें.” किसान Government से प्याज के निर्यात पर लगी रोक हटाने और एमएसपी लागू करने की मांग कर रहे हैं. कम दामों से वे अतिरिक्त आर्थिक बोझ से जूझ रहे हैं.
उनके मुताबिक, पिछले सालों में प्याज ने किसानों को अच्छा मुनाफा दिया था. कीमतें चढ़ने पर एक किसान ने ‘सुनहरा प्याज’ बनाकर सफलता का जश्न मनाया था. लेकिन इस बार उत्पादन लागत से कम दाम मिलने से स्थिति गंभीर हो गई है. एपीएमसी मंडियों में भीड़ बढ़ रही है, पर लाभ की उम्मीद कम हो रही है.
वहीं, किसान संगठन मांग कर रहे हैं कि Government बाजार को स्थिर करे और उनकी फसल का सही मूल्य सुनिश्चित करे. धारवाड़ के कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अतिरिक्त उत्पादन और निर्यात नीति की कमी ने इस संकट को बढ़ाया है. प्रशासन से अपील की जा रही है कि किसानों को राहत देने के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं, वरना यह ‘लाल सोना’ उनके लिए अभिशाप बन सकता है.
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एसएचके/डीएससी