बेंगलुरु, 26 सितंबर . कर्नाटक सरकार ने गुरुवार को राज्यपाल के कार्यालय को सीधे जानकारी नहीं देने का फैसला किया.
साथ ही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को राज्य में स्वतंत्र रूप से जांच करने की अनुमति देने वाले प्रावधान को वापस लेने का भी फैसला किया गया है.
ये दोनों फैसले राज्य के मंत्रिमंडल की बैठक में लिए गए हैं. कर्नाटक के कानून मंत्री एच.के. पाटिल ने मंत्रिमंडल की बैठक की जानकारी साझा करते हुए कहा, “ये निर्णय देश में संघीय ढांचे को मजबूत करने के लिए लिए गए हैं.”
उन्होंने कहा, “राज्यपाल सरकार को “असहिष्णु तरीके” से पत्र लिख रहे हैं और तुरंत या एक दिन के भीतर जानकारी उपलब्ध कराने को कह रहे हैं. इसलिए मंत्रिमंडल ने कर्नाटक सरकार के मुख्य सचिव को निर्देश देने का फैसला किया है कि वह राज्यपाल को सीधे जानकारी न दें.”
उन्होंने कहा कि मुख्य सचिव को निर्देश दिया जाएगा कि राज्यपाल के प्रश्नों को राज्य मंत्रिमंडल के संज्ञान में लाने के बाद ही सूचना उपलब्ध कराने की दिशा में आगे बढ़ा जाए. मुख्य सचिव राज्यपाल को कोई सीधी जानकारी नहीं दे सकते.
उन्होंने कहा कि सरकार और राज्यपाल कार्यालय के बीच सूचना लीक होने के मामले की जांच और पूछताछ की गई है. कैबिनेट ने 6 सितंबर के पत्र को लीक करने पर चर्चा की थी. पत्र राजभवन द्वारा लीक किए गए हैं. लोगों को मौजूदा हालात और सच्चाई से अवगत कराने की जरूरत है. राजभवन अनावश्यक रूप से कांग्रेस सरकार पर आरोप लगा रहा है.
कानून मंत्री ने आगे कहा कि मंत्रिमंडल ने उस अधिनियम को वापस लेने का निर्णय लिया है, जो सीबीआई को राज्य में स्वतंत्र रूप से जांच करने का अधिकार देता था. ऐसे में राज्य में सीबीआई को दी गई खुली छूट वापस लेने का निर्णय लिया गया. सरकार ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के तहत यह प्रावधान किया था. कैबिनेट ने विधेयक को वापस लेने का फैसला किया है.
उन्होंने कहा कि ऐसा आरोप है कि सीबीआई का दुरुपयोग किया जा रहा है और इसीलिए “राज्य में सीबीआई को फ्री हैंड वापस लेने का निर्णय लिया गया है. हमने सीबीआई को पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करते देखा है. चुनाव के समय कुछ लोगों की जांच की जाती है, जबकि राज्यपाल राज्य सरकार पर अनावश्यक रूप से आरोप लगाते रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी घटनाक्रम का उल्लेख किया है”.
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एकेएस/एकेजे