नई दिल्ली, 25 सितंबर . सिनेमा के पर्दे से संसद के गलियारे में कदम रखने वाली अभिनेता से नेता बनीं लोकसभा सांसद कंगना रनौत ने केंद्र सरकार द्वारा निरस्त किए गए तीन कृषि कानूनों की वापसी की मांग कर दी. वह इसके बाद एक बार फिर से विवादों में आ गईं. ऐसे में कंगना का यह बयान भी वैसा ही था जैसा कि वह पूर्व में अपने बयानों के जरिए विवाद पैदा करती रही हैं. ऐसे में कंगना के इस तरह के बयान उनकी राजनीतिक सोच को लेकर सवाल खड़े करती है. अब राजनीति के जानकार भी यह सोचना लगे हैं कि क्या कंगना का ऐसा व्यवहार और इस तरह की विवादित बयानबाजी महज़ संयोग है, या यह सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है?
कंगना के “कृषि कानूनों को वापस लाओ” वाली टिप्पणी पर उनकी ही पार्टी की तरफ से तत्काल प्रतिक्रिया भी आई. पार्टी ने तुरंत उनकी टिप्पणियों से दूरी बना ली और इस बात पर जोर दिया कि वह पार्टी की प्रवक्ता नहीं हैं और ना ही वह पार्टी के विचारों को रखने के लिए अधिकृत हैं.
दरअसल हरियाणा में विधानसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दल दमखम लगा रहे हैं और यहां भाजपा की सरकार है और वह भी एक बार फिर से प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए मैदान में है. ऐसे में यह घटना विशेष रूप से यहां के लिए संवेदनशील है, जहां किसान चुनावी शक्ति रखते हैं. ऐसे में कंगना के बयान पर जिस तरह से भाजपा की त्वरित प्रतिक्रिया आई उससे साफ पता चल गया कि वह विवादास्पद कृषि कानूनों को लेकर कोई बवाल नहीं चाहती है जिससे की पार्टी की छवि को चुनाव के दौरान कोई नुकसान पहुंचे.
पार्टी की प्रतिक्रिया आने के बाद कंगना रनौत ने भी सार्वजनिक तौर पर इस बयान के लिए माफ़ी मांगते हुए कहा, “मैं अपने शब्द वापस लेती हूं.”
मतलब साफ है की कंगना के द्वारा यह माफी मांगना साबित करता है कि उन्हें अपनी पार्टी से इसके लिए दबाव मिला है.
दरअसल किसान आंदोलन के दौरान रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग जैसी अंतरराष्ट्रीय हस्तियों की आलोचना से लेकर राहुल गांधी की विरासत को खारिज करने तक, कंगना की टिप्पणियां अक्सर बवाल मचाती रही हैं. ऐसे में कंगना की इस तरह की बयानबाजी को लेकर यह सवाल जरूर उठते रहे हैं कि क्या ये बयान उनकी अपनी सोच की उपज है या वह अपनी पार्टी के एजेंडे को लेकर प्रतिक्रिया जानने के उद्देश्य से ऐसा करती हैं और यह उनकी रणनीति का हिस्सा है.
कंगना के विवादास्पद बयानों की टाइमलाइन देखिए तो पता चलेगा कि उनके बयान अक्सर महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं के समय से मेल खाते हैं. ऐसा लगता है कि वह इन मुद्दों पर जनता की भावना को देखना या राष्ट्रवादी विषयों से जुड़े मुद्दों पर समर्थन जुटाना चाहती हैं.
यह पहली बार नहीं है, जब कंगना रनौत ने किसानों से जुड़े मुद्दे को लेकर विवादित टिप्पणी की हो. इसके पहले भी उन्होंने किसान आंदोलन के दौरान धरने में बैठी महिलाओं पर 100-100 रुपये लेकर प्रदर्शन में बैठने का आरोप लगाया था. जिसके बाद काफी बवाल मचा था. इसके साथ ही कंगना रनौत देश के किसानों की तुलना आतंकवादी से करके बुरी तरह से फंस चुकी हैं.
पिछले महीने ही कंगना रनौत के एक बयान ने उस वक्त विवाद खड़ा कर दिया था जब उन्होंने कहा था कि किसान आंदोलन के जरिए भारत में बांग्लादेश जैसी साजिश रची जा रही थी. एक्ट्रेस ने कहा था कि पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में जो हुआ वह भारत में होते हुए भी देर नहीं लगेगी. भाजपा ने उनके इस तरह के बयान पर नाराजगी भी जताई थी और इस पर जबाव भी मांगा था.
5 अक्टूबर को हरियाणा में विधानसभा के चुनाव होने हैं. हरियाणा में किसान वोटर्स की संख्या अच्छी खासी है. ऐसे में विधानसभा चुनाव में किसान किसी भी पार्टी सरकार बनाने में अहम माने जाते हैं. फिलहाल 10 साल से भारतीय जनता पार्टी की सरकार यहां है और किसानों का मुद्दा वह बार-बार उठा रही हैं. ऐसे में भाजपा कंगना के इन बयानों को लेकर राज्य में किसी भी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहती है.
हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले कंगना रनौत किसानों को लेकर विवादित बयान क्यों दे रही हैं इसको लेकर जरूर सवाल किए जा रहे हैं और लोग यह जानना चाह रहे हैं कि उनका बयान संयोग है या फिर प्रयोग? क्या कंगना रनौत के जरिए पार्टी ऐसे विवादित मसलों पर सियासी दलों का मूड भांपना चाह रही है, या फिर अभिनेत्री कंगना रनौत भाजपा में किसी की बात सुनने को तैयार नहीं है?
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एसके/जीकेटी