जुबिन ईरानी ने बांधे पत्नी स्मृति ईरानी की तारीफों के पुल, वक्फ बिल और एनईपी को लेकर दिया ये बयान

मुंबई, 6 अप्रैल . मशहूर टेलीविजन शो ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ से जल्द ही वापसी करने वालीं अभिनेत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के पति ने वक्फ बिल और नई शिक्षा नीति को लेकर एक बड़ा बयान दिया है.

जुबिन ने रविवार को अपने इंस्टाग्राम टाइमलाइन पर दो तस्वीरों को शेयर किया. पहली तस्वीर में वह दोनों कैमरे के सामने पोज देते नजर आ रहे हैं, जबकि दूसरी तस्वीर में स्मृति अपनी रसोई में नजर आ रही हैं, जो जुबिन ने खींची है.

जुबिन ने कैप्शन में एक लंबा नोट लिखकर अपनी पत्नी के दृढ़ संकल्प की तारीफ की.

उन्होंने लिखा, “इतने सालों से मैं स्मृति को भारतीय राजनीति के उथल-पुथल भरे दौर में आगे बढ़ते हुए देख रहा हूं. मैंने उनके काम के बारे में बात करने के लिए शायद ही कभी सोशल मीडिया का सहारा लिया हो, लेकिन इस सप्ताहांत, कुछ बदल गया. किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में नहीं, जो वर्षों से उनके साथ चलता रहा है, बल्कि इस देश के एक नागरिक के रूप में जो एक सच्चे अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखता है जिसने कुछ असाधारण देखा है.”

उन्होंने वक्फ विधेयक के पारित होने को एक साहसिक और आवश्यक निर्णय बताया.

उन्होंने आगे कहा, “यह सिर्फ एक विधायी जीत नहीं थी, यह शांत साहस का क्षण था, जिसका नेतृत्व एक ऐसे व्यक्ति ने किया, जिसने हमेशा पर्दे के पीछे काम किया. कभी सुर्खियों का पीछा नहीं किया और सिर्फ न्याय चाहता है और जो बात बहुत कम लोग जानते हैं, वह यह है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की नींव- इसका विजन, इसका पहला मसौदा, इसकी रीढ़ भी स्मृति ने तब रखी थी, जब वह मानव संसाधन विकास मंत्री थीं.”

उन्होंने आगे कहा, ” मैंने तुम्हें देखा, स्मृति, न सिर्फ एक मंत्री के रूप में, बल्कि एक अथक, न झुकने वाली ताकत के रूप में, जो आधुनिक भारत की दो सबसे महत्वपूर्ण नीतियों को आकार दे रही थी. तुम्हारी अनगिनत रातें जो पढ़ने, मसौदा तैयार करने, फिर से लिखने और अपनी बात पर अड़े रहने में जो अनगिनत रातें बिताईं, कभी व्यक्तिगत शोहरत के लिए नहीं, हमेशा लोगों के लिए. ये मेरे दिमाग में हमेशा बनी रहेंगी. तुम्हारा काम दिखावा नहीं था, यह उद्देश्य था. स्मृति ने कभी श्रेय की चाहत नहीं की. वह पार्टी और प्रधानमंत्री के विजन की सेवा में अडिग रहीं, अक्सर तालियों के बिना, बिना किसी पहचान के. शायद नियति ने अभी तक उन्हें वह प्रशासनिक श्रेय नहीं दिया, जो कई लोग मानते हैं कि वह हकदार हैं, लेकिन पर्दे के पीछे, वह परिवर्तन की खामोश शिल्पकार रही हैं- ईंट दर ईंट, नीति दर नीति.”

जुबिन के अनुसार उनकी पत्नी का योगदान उल्लेखनीय और गहरे विश्वास से जुड़ा हुआ है, न कि महत्वाकांक्षा से.

उन्होंने आगे कहा, “जब दूसरों ने सुर्खियों की चाहत की, उन्होंने मेहनत को चुना और ऐसा करते हुए उन्होंने परिवर्तन की नींव को आकार दिया. आज मैं उस खामोशी को सम्मान देना चाहता हूं. उस हिम्मत, उस बड़े उद्देश्य के प्रति अटूट निष्ठा को. धन्यवाद, स्मृति, न सिर्फ एक ऐसे शख्स के तौर पर जो तुम्हें करीब से जानता है, बल्कि एक नागरिक के तौर पर, जिसने तुम्हें बिना शिकायत और बिना समझौता किए परिवर्तन का बोझ उठाते देखा है. तुम्हारी कोशिश कभी सत्ता की नहीं, बल्कि उद्देश्य की रही है. तुमने इस राष्ट्र को जो दिया, वह सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि एक विरासत है, जो जुनून, बलिदान और ईमानदारी से गढ़ी गई है. मुझे उम्मीद है कि एक दिन दुनिया वह देखेगी जो मैंने चुपचाप हमेशा देखा.”

एफएम/केआर