बरेली, 22 जनवरी . ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने वक्फ बिल के लिए गठित जेपीसी कमेटी पर बड़ा आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि बरेलवी उलमा और बरेलवी संगठनों को नजरअंदाज किया गया है.
मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कहा कि भारत सरकार ने वक्फ में संशोधन करने के लिए एक बिल संसद में पेश किया था, उस पर सहमति न बन पाने की वजह से जेपीसी कमेटी का गठन किया गया. उसका अध्यक्ष जगदंबिका पाल को बनाया गया. जगदंबिका पाल तमाम मुस्लिम संगठनों, बुद्धिजीवियों की राय जानने के लिए पूरे भारत में मीटिंग आयोजित कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि जबसे जेपीसी कमेटी का गठन हुआ है, उस वक्त से लेकर अब तक भारत के विभिन्न हिस्सों में मीटिंग कर चुके हैं, जिसमें खास तौर पर दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार और लखनऊ में मीटिंग की गई है. अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि उन्होंने हर जगह बरेलवी उलमा और बरेलवी संगठनों को नहीं बुलाया और मुकम्मल तरीके से नजरअंदाज किया है.
मौलाना ने कहा कि देश की मुस्लिम आबादी के हिसाब से अगर देखें तो सुन्नी-सूफी बरेलवी मुसलमानों की आबादी बहुसंख्यक है. यह करीब 80 फीसदी है. जगदंबिका पाल ने लखनऊ समेत सभी जगहों पर बरेलवी उलमा और बरेलवी संगठनों को नजरंदाज किया है. इससे जाहिर होता है कि उनकी नजर में बरेलवी मुसलमानों की कोई अहमियत नहीं है. वो सिर्फ चंद फीसदी मुस्लिम संगठनों से बात करके अपना काम पूरा कर देना चाहते हैं. यह एक तरह से एक विशेष फिरके को बढ़ावा देना और इंसाफ के खिलाफ कार्य करना है.
शहाबुद्दीन रजवी ने कहा कि बरेलवी उलमा उनसे बातचीत करके अपना पक्ष रखना चाहते थे. इस संबंध में उनको पत्र भी लिखा. उन्होंने न मुलाकात का समय दिया और न ही पत्र का कोई जवाब दिया. उनके काम करने की कार्यशैली जेपीसी के अध्यक्ष की हैसियत से बेहतर नहीं कही जा सकती. इस स्थिति में वक्फ संशोधन बिल पर संसद में पेश की जाने वाली रिपोर्ट एकतरफा कहलाएगी.
उन्होंने सलाह देते हुए कहा कि उन्हें अपने काम करने के तौर-तरीकों पर पुनर्विचार करना चाहिए. 80 फीसदी बरेलवी मुसलमानों को जानबूझकर नजरअंदाज करने की पॉलिसी को खत्म करना होगा.
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विकेटी/एबीएम