चिकित्सकों की कमी झेल रहा झारखंड, 3.50 करोड़ की आबादी पर मात्र 7,374 डॉक्टर

रांची, 1 जुलाई . झारखंड में चिकित्सकों की जबरदस्त कमी है. राज्य में तकरीबन 4,746 की आबादी पर मात्र एक डॉक्टर हैं, जबकि डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार प्रति एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए.

राज्य के सरकारी हॉस्पिटलों में 3,691 डॉक्टरों के पद सृजित हैं, लेकिन इनमें से 2,000 से ज्यादा पद खाली पड़े हैं. स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 1,021 सृजित पद हैं, लेकिन मात्र 185 स्पेशलिस्ट डॉक्टर कार्य कर रहे हैं. कहने का मतलब है कि लगभग 80 फीसदी पद रिक्त हैं.

झारखंड लोक सेवा आयोग की ओर से 193 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है. इसके अलावा 800 से ज्यादा स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए जेपीएससी के पास विभाग की ओर से आग्रह भेजा गया है.

नेशनल मेडिकल कमीशन के मुताबिक, झारखंड में कुल रजिस्टर्ड एलोपैथिक डॉक्टरों की संख्या 7,374 है. डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार, राज्य की तकरीबन 3.50 करोड़ की आबादी के लिहाज से कम से कम 35,000 डॉक्टर होने चाहिए. लेकिन, रजिस्टर्ड डॉक्टरों की संख्या के हिसाब से देखें तो औसतन 4,746 लोगों के लिए मात्र एक डॉक्टर उपलब्ध हैं.

बीते चार वर्षों में मेडिकल कॉलेजों से लेकर प्रखंडों के अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए आधा दर्जन से ज्यादा विज्ञापन निकले, लेकिन विज्ञापन में जारी पचास फीसदी रिक्तियां भी नहीं भरी जा सकी. आलम यह है कि जितनी संख्या में वैकेंसी निकल रही है, उतनी संख्या में भी आवेदक आगे नहीं आ रहे.

राज्य के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज रिम्स में करीब आठ महीने पहले 100 सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया था. इंटरव्यू प्रक्रिया पूरी होने के बाद मात्र 33 डॉक्टरों का ही चयन किया जा सका. 100 रिक्त पदों के लिए मात्र 58 आवेदक इंटरव्यू के लिए पहुंचे थे.

इसी तरह बीते साल सितंबर महीने में जेपीएससी (झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन) द्वारा गैर शैक्षणिक विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति के लिए आयोजित इंटरव्यू में बेहद कम संख्या में उम्मीदवार पहुंचे. नॉन टीचिंग स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 771 पदों के लिए इंटरव्यू लिया गया, इसमें मात्र 266 उम्मीदवार ही शामिल हुए. इससे पूर्व भी आयोग द्वारा वर्ष 2015 में 654 पदों पर नियुक्ति के लिए इंटरव्यू लिया गया था, लेकिन उम्मीदवारों के नहीं आने से 492 पद खाली रह गए थे.

डॉक्टरों के सरकारी नौकरी में दिलचस्पी नहीं लेने की पीछे कई वजहें हैं. एक तो ज्यादातर डॉक्टरों को कॉरपोरेट और प्राइवेट हॉस्पिटल्स में ऊंचे पैकेज की नौकरियां रास आ रही है, दूसरी वजह यह है कि उन्हें झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों और संसाधनविहीन हॉस्पिटलों में पोस्टिंग पसंद नहीं. कई डॉक्टर्स बड़े शहरों की ओर भी रूख कर रहे हैं.

एसएनसी/एबीएम