झारखंड हाईकोर्ट ने बायो मेडिकल वेस्ट के निपटारे पर रिपोर्ट दाखिल न करने पर जताई नाराजगी

रांची, 2 मई . झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के अस्पतालों, नर्सिंग होम और क्लीनिक से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के बारे में जिलों से रिपोर्ट नहीं दाखिल किए जाने पर गहरी नाराजगी जाहिर की है.

चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्र राव की अध्यक्षता वाली बेंच ने शुक्रवार को इससे संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि जनस्वास्थ्य से संबंधित संवेदनशील विषय पर विभिन्न जिलों के प्रशासन की ओर से दो माह बाद भी जवाब नहीं आने से पता चलता है कि इस पर सरकारी तंत्र गंभीर नहीं है.

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से सभी जिलों की रिपोर्ट दाखिल करने के लिए छह हफ्ते का वक्त मांगा गया, जिसे कोर्ट ने नामंजूर कर दिया. इस मामले की अगली सुनवाई 8 मई को निर्धारित की गई है.

कोर्ट ने इस मामले में 25 फरवरी को हुई पिछली सुनवाई के दौरान राज्य के सभी 24 जिलों के उपायुक्तों को निर्देश दिया था कि वे बायो वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट की स्थिति, मेडिकल वेस्ट से प्रदूषण, अस्पतालों द्वारा नियम-कानूनों के अनुपालन आदि से संबंधित विषयों पर शपथ पत्र के जरिए रिपोर्ट दाखिल करें.

झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि झारखंड में पांच जिलों लोहरदगा, रामगढ़, पाकुड़, धनबाद एवं आदित्यपुर में बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट चल रहे हैं, जबकि देवघर में बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट बन रहा है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इन वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट को चालू रखने के लिए अनुमति देनी थी, जिसे उसने दे दिया था.

इस मामले में जनहित याचिका झारखंड ह्यूमन राइट कनफेडरेशन की ओर से दाखिल की गई है. प्रार्थी ने याचिका में झारखंड में एन्वॉयरमेंटल प्रोटक्शन एक्ट के अंतर्गत बायो मेडिकल वेस्ट डिस्पोजल मैनेजमेंट रूल को लागू कराने का अनुरोध किया है.

कहा गया है कि राज्य में अस्पतालों, क्लीनिक, नर्सिंग होम आदि जगहों से बायोमेडिकल कचरे के निष्पादन के लिए उचित व्यवस्था नहीं होने से जनस्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है. मांग की गई है कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत बायो वेस्ट मैनेजमेंट हैंडलिंग रूल का प्रावधान झारखंड में लागू किया जाना चाहिए.

एसएनसी/एबीएम