जमुई : लाखों की नौकरी छोड़ गांव में खड़ी की मिसाल, गारमेंट फैक्ट्री से बदली तस्वीर

जमुई, 20 मई . बिहार के जमुई जिले के सिकंदरा प्रखंड के एक छोटे से गांव में रहने वाले 30 वर्षीय सिकंदर कुमार सिंह चंद्रवंशी ने वह कर दिखाया है, जो अक्सर सिर्फ कहानियों में ही सुनने को मिलता है. मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद देश के विभिन्न महानगरों से मोटे पैकेज की नौकरियों के प्रस्ताव आते हैं, तो अधिकांश लोग उन्हें स्वीकार कर लेते हैं. लेकिन, इस युवक ने गांव लौटकर अपना स्टार्टअप शुरू किया, जिससे स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिला.

दरअसल, इस सिकंदर के जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया, जब उसकी पत्नी की असमय मौत हो गई. इस हादसे ने उसे भीतर तक तोड़ दिया, लेकिन उसने खुद को समेटा और जीवन को एक नई दिशा देने की ठानी. उसने तय किया कि वह अपने गांव में, अपने परिवार के साथ रहकर कुछ ऐसा करेगा, जिससे न केवल उसका जीवन बदले, बल्कि उसके साथ गांव के अन्य लोगों का भी भविष्य सुधरे. उसने अपने गांव में एक रेडीमेड गारमेंट फैक्ट्री की शुरुआत की. शुरू-शुरू में संसाधनों की कमी थी, लेकिन उसके आत्मविश्वास और मेहनत ने वह कर दिखाया, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.

आज उनकी फैक्ट्री लाखों का टर्नओवर कर रही है और लगभग दो दर्जन कारीगरों को रोजगार दे रही है. ये वही कारीगर हैं जो पहले महानगरों में मजदूरी करते थे. अब अपने ही गांव में सम्मानजनक जीवन जी रहे हैं. इस पहल से गांव में न सिर्फ रोजगार के अवसर बढ़े हैं, बल्कि युवाओं को भी यह प्रेरणा मिली है कि अपने गांव से भी बदलाव की शुरुआत की जा सकती है. उन्होंने यह साबित किया है कि सरकारी सहायता या बड़े निवेश के बिना भी, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी सपना साकार किया जा सकता है.

सिकंदर कुमार सिंह चंद्रवंशी ने बताया कि वह पहले मुंबई में मैकेनिकल इंजीनियर थे. अपनी पत्नी के निधन के बाद उन्होंने स्टार्टअप शुरू करने का फैसला किया. वर्तमान में उनकी फैक्ट्री 70-80 हजार रुपए मासिक कमाई कर रही है और 10 कारीगरों को रोजगार दे रही है. वह सरकारी सहायता से 40-50 लाख रुपए के लोन की योजना बना रहे हैं ताकि व्यवसाय का विस्तार कर सकें. उनका मानना है कि नौकरी के मुकाबले स्टार्टअप से उनकी अगली पीढ़ी को बेहतर शुरुआत मिलेगी, क्योंकि वह शून्य से शुरू नहीं करेंगे. उनके उत्पाद बिहार के लखीसराय, नवादा, शेखपुरा और झारखंड में अच्छा रिस्पॉन्स पा रहे हैं, और वे स्थानीय रोजगार सृजन में भी योगदान दे रहे हैं.

कारीगर अल्लादीन ने कहा, “हम यहां सिलाई का काम कर रहे हैं. लॉकडाउन के बाद से हम यहीं हैं. पहले हम दिल्ली और मुंबई में काम करते थे. लेकिन अब यहां भी उतनी कमाई हो जा रही है, जितनी वहां होती थी.”

कारीगर भूलन राम ने बताया, “मुंबई से आकर हम जमुई में काम कर रहे हैं. यहां हमें अच्छी कमाई हो रही है, महीने में 20-25 हजार रुपए मिल रहे हैं. यहां कोई परेशानी नहीं है और हमें अच्छा पैसा मिल रहा है. पहले कमाई के लिए दूर जाना पड़ता था, लेकिन अब यहीं काम मिल रहा है.”

पीएसके/एकेजे