झारखंड की हाईप्रोफाइल हजारीबाग सीट की ‘सांसदी’ के लिए दो विधायकों के बीच दिलचस्प मुकाबला

हजारीबाग, 4 अप्रैल . झारखंड में सियासी नजरिए से हमेशा हाईप्रोफाइल मानी जाने वाली हजारीबाग लोकसभा सीट की ‘सांसदी’ के लिए इस बार दो विधायकों के बीच कांटे का मुकाबला है.

दिलचस्प यह है कि दोनों वर्ष 2019 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में हजारीबाग जिले की दो अलग-अलग सीटों से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर विजयी हुए थे. पंद्रह दिन पहले इनमें से एक ने पाला बदलकर कांग्रेस का दामन थाम लिया और अब अखाड़े में दोनों एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं.

भाजपा ने हजारीबाग सदर सीट के विधायक मनीष जायसवाल को मैदान में उतारा है तो मांडू सीट के विधायक जयप्रकाश भाई पटेल कांग्रेस के प्रत्याशी हैं. मनीष जायसवाल लगातार दो बार विधायक चुने गए हैं, जबकि जयप्रकाश भाई पटेल तीन बार. इनमें एक समानता यह भी है कि सियासत के मैदान में दोनों की लैंडिंग अपने-अपने पिता की विरासत की बदौलत हुई.

मनीष जायसवाल के पिता ब्रजकिशोर जायसवाल कई बार हजारीबाग नगरपालिका अध्यक्ष रहे हैं. उन्होंने हजारीबाग सदर विधानसभा सीट से दो बार कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव भी लड़ा था, लेकिन कभी जीत नहीं पाए थे. दूसरी तरफ, जयप्रकाश भाई पटेल के पिता टेकलाल महतो मांडू से पांच बार विधायक और गिरिडीह से एक बार सांसद रहे थे.

खास बात यह है कि चुनाव मैदान में इन दोनों की एक बार पहले भी आमने-सामने भिड़ंत हो चुकी है. वर्ष 2011 में मांडू विधानसभा सीट पर विधायक टेकलाल महतो के निधन की वजह से उपचुनाव हुआ था. तब, दिवंगत टेकलाल महतो के पुत्र जयप्रकाश भाई पटेल झामुमो के उम्मीदवार थे, जबकि मनीष जायसवाल झारखंड विकास मोर्चा के. इस चुनाव में जयप्रकाश भाई पटेल ने जीत दर्ज की थी.

इस दफा, दोनों पहली बार संसदीय चुनाव लड़ रहे हैं. हजारीबाग झारखंड की उत्तरी छोटानागपुर कमिश्नरी का हेडक्वार्टर है. केंद्र की सरकारों में कई बार मंत्री और अपने दौर में भाजपा के कद्दावर नेता रहे यशवंत सिन्हा, फिर उनके पुत्र जयंत सिन्हा की वजह से हजारीबाग को हाईप्रोफाइल सीट माना जाता रहा है. इसके पहले भी बिहार में लंबे समय में कांग्रेस के बाद दूसरे सबसे बड़े दल की हैसियत रखने वाली रामगढ़ राजा की ‘छोटानागपुर-संथाल परगना जनता पार्टी’ का केंद्र हजारीबाग ही था और इस वजह से यह सियासी नजरिए से बेहद अहम इलाका रहा है.

इस सीट के 1984 से लेकर अब तक यानी पिछले 40 वर्षों के इतिहास पर गौर करें तो 25 वर्ष भाजपा और 15 वर्ष गैरभाजपा नेताओं ने संसद में इस इलाके का प्रतिनिधित्व किया है. कांग्रेस का झंडा यहां आखिरी दफा 1984 में लहराया था. तब, इंदिरा गांधी के निधन से उपजी सहानुभूति लहर में कांग्रेस के प्रत्याशी दामोदर पांडेय विजयी हुए थे. आजादी के बाद से इस सीट पर अब तक कुल 17 बार चुनाव हो चुके हैं. भाजपा इनमें से सात चुनावों में जीत हासिल कर चुकी है. जबकि, कांग्रेस दो बार 1971 और 1984 में यहां सफल हो पाई.

वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा के जयंत सिन्हा ने यहां कांग्रेस के प्रत्याशी गोपाल साहू को एकतरफा मुकाबले में 4 लाख 79 हजार 548 मतों से शिकस्त दी थी. इस बार दोनों पार्टियों ने नए योद्धाओं को मैदान में उतारा है. भाजपा ने जयंत सिन्हा का टिकट काटकर मनीष जायसवाल पर भरोसा किया है तो कांग्रेस ने महज पंद्रह दिन पहले भाजपा छोड़ने वाले जयप्रकाश भाई पटेल पर. तीसरा कोई कद्दावर या महत्वपूर्ण प्रत्याशी मैदान में अब तक नहीं आया है और न ही इसकी कोई संभावना दिख रही है.

मनीष जायसवाल को भाजपा के परंपरागत वोटरों का भरोसा तो है ही, दस वर्षों तक विधायक के रूप में अपने कामकाज से उन्होंने एक अलग पहचान भी कायम की है. पिछले 2 मार्च को भाजपा की ओर से उम्मीदवारी घोषित होने के बाद वह लगातार जनसंपर्क में जुटे हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस के जयप्रकाश भाई पटेल भी विधायक के रूप में अपनी उपलब्धियां गिनाकर और अपने दिवंगत पिता टेकलाल महतो की विरासत का हवाला देकर वोट मांग रहे हैं.

भाजपा की ओर से इस सीट पर तीन दफा सांसद रहे यशवंत सिन्हा इस बार जयप्रकाश पटेल के पक्ष में खुलकर बैटिंग कर रहे हैं. पांच विधानसभा क्षेत्रों और दो जिलों में फैले इस संसदीय सीट पर वोटरों की संख्या 19 लाख 18 हजार 791 है. अगले 20 दिनों में मतदाता सूची का आकार कुछ और बढ़ सकता है. यहां 20 मई को मतदान होना है और अगले 45 दिनों में सियासी समीकरणों में कितने उतार-चढ़ाव आते हैं, यह देखना दिलचस्प है.

एसएनसी/एबीएम