नई दिल्ली, 20 जनवरी . सोरायसिस नामक त्वचा रोग से पीड़ित लोगों के छोटी आंत में अक्सर अदृश्य सूजन होती है, जो ‘लीकी आंत’ की समस्या को और बढ़ाती है.
स्वीडन की उप्साला विश्वविद्यालय की टीम ने कहा कि आंत की सूजन यह बता सकती है कि सोरायसिस के रोगियों को अक्सर जठरांत्र संबंधी समस्याएं क्यों होती हैं और क्रोहन रोग विकसित होने का खतरा अधिक होता है.
सोरायसिस रोगियों में जोड़ों में सूजन भी हो सकती है. अध्ययन में सोरायसिस के 18 रोगियों व 15 स्वस्थ लोगों को शामिल किया गया. इनमें से किसी में भी जठरांत्र संबंधी बीमारी नहीं पाई गई. उनके छोटे और बड़े आंत से नमूने लिए गए.
इसके बाद शोधकर्ताओं ने श्लेष्म झिल्ली में विभिन्न प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिकाओं का अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि सोरायसिस से पीड़ित लोगों की छोटी आंत में कुछ प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिकाओं की संख्या अधिक थी. उप्साला विश्वविद्यालय की शोधकर्ता मारिया लैम्पिनन ने कहा कि इन कोशिकाओं ने “प्रो-इन्फ्लेमेटरी गतिविधि के संकेत भी दिखाए”.
उन्होंने कहा, “दिलचस्प बात यह है कि हमने सोरायसिस के रोगियों की त्वचा की सूजन में एक ही प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिकाएं पाईं. इससे संकेत मिलता है कि त्वचा की सूजन का आंत पर प्रभाव पड़ सकता है.”
ये निष्कर्ष बायोकेमिका एट बायोफिसिका एक्टा (बीबीए) – रोग का आणविक आधार पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं.
आम तौर पर, आंतों की श्लेष्मा एक सुरक्षात्मक बाधा के रूप में कार्य करती है, जो पोषक तत्वों और पानी को भी इसके माध्यम से गुजरने देती है. कुछ ऑटोइम्यून बीमारियों में, आंतों की बाधा खराब तरीके से काम कर सकती है. ‘लीकी आंत’ या आंतों के क्षतिग्रस्त होने से जिससे बैक्टीरिया और हानिकारक पदार्थ रक्त में मिलकर सूजन पैदा करते हैं.
जब ये पदार्थ रक्त के माध्यम से शरीर में फैलते हैं, तो ये अधिक व्यापक सूजन का कारण भी बन सकते हैं.
अध्ययन में सोरायसिस के आधे रोगियों में ‘लीकी आंत’ की समस्या और गंभीर हुई थी. इन रोगियों ने सामान्य रोगियों की तुलना में पेट दर्द और सूजन जैसे जठरांत्र संबंधी लक्षण भी बताए.
उनकी आंतों में सूजन पैदा करने वाले पदार्थों का स्तर भी बढ़ा हुआ था.
शोधकर्ताओं ने कहा, “हमारे अध्ययन में सोरायसिस रोगियों में अपेक्षाकृत हल्की त्वचा की बीमारी थी और गैस्ट्रोस्कोपी में आंतों में कोई सूजन नहीं दिखी, स्वस्थ व्यक्ति की तुलना में उनकी छोटी आंत में आश्चर्यजनक रूप से स्पष्ट परिवर्तन थे. ये परिवर्तन यह बता सकते हैं कि सोरायसिस पीड़ितों को अक्सर जठरांत्र संबंधी समस्याएं क्यों होती हैं, और क्रोहन रोग विकसित होने का जोखिम क्यों बढ़ जाता है.”
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