लंदन, 1 अक्टूबर . लंदन में संरचनात्मक नस्लवाद एक गंभीर समस्या है. यह जहां जातीय अल्पसंख्यक समुदायों के स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है वहीं जातीय समूहों के बीच असमानताओं को भी बढ़ावा दे रहा है.
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ इक्विटी (आईएचई) की ओर से प्रकाशित रिपोर्ट में पाया गया कि जो लोग अपने दैनिक जीवन में बार-बार नस्लवाद के संपर्क में आते हैं, उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य खराब होता है.
रिपोर्ट के अनुसार, लंदन में लगभग 70 फीसदी बांग्लादेशी और पाकिस्तानी बच्चे, 52 प्रतिशत अश्वेत बच्चे, गरीबी में बड़े हो रहे हैं. वहीं श्वेत परिवारों में 26 फीसदी बच्चे गरीबी में बड़े हो रहे हैं.
रिपोर्ट बताती है कि गरीबी में बड़े होने वाले बच्चों के अच्छे आवास में रहने या पौष्टिक भोजन तक पहुंच की संभावना कम होती है. इसका उनकी शैक्षिक संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि वर्कप्लेस पर नस्लवाद के कारण शिक्षा में प्रगति, अच्छे रोजगार या आय में तब्दील नहीं हो पाती. रोजगार के अवसरों और वेतन के स्तर में जातीय असमानताएं सबसे अधिक स्पष्ट हैं.
रिपोर्ट में कहा गया कि 16 से 24 वर्ष की आयु के अश्वेत लोगों में बेरोजगारी की दर उसी आयु के श्वेत लोगों की तुलना में दोगुनी से भी अधिक है.
लंदन में 40 फीसदी जातीय अल्पसंख्यक वर्कर ने पिछले पांच वर्षों में वर्कप्लेस पर नस्लवाद की रिपोर्ट की थी.
देश भर में एक तिहाई एम्प्लायर में समानता, विविधता और समावेश रणनीतियों का अभाव पाया गया.
लंदन यूनाइटेड किंगडम की राजधानी है और देश का सबसे बड़ा शहर है, जिसकी जनसंख्या 2022 में 8,866,180 है. इसे दुनिया के प्रमुख ग्लोबल शहरों में से एक माना जाता है. 2021 की जनगणना के मुताबिक 3,575,739 लोग या लंदन की आबादी का 40.6% विदेशी मूल के थे.
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एमके