नांदेड़, 14 अगस्त . देश जहां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है, वहीं महाराष्ट्र का एक छोटा सा शहर देशभक्ति की तैयारियों में बड़ी भूमिका निभा रहा है.
नांदेड़ में मराठवाड़ा खादी ग्रामोद्योग समिति का मुख्यालय है. यह भारत के उन गिने-चुने आधिकारिक केंद्रों में से एक है, जहां राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का निर्माण सरकारी मानकों के अनुसार किया जाता है. साधारण गांवों के दफ्तरों से लेकर दिल्ली के लाल किले की भव्यता तक ये झंडे पूरे देश में गर्व से फहराए जाते हैं.
इस अनूठी जिम्मेदारी की जड़ें 1965 में हैं, जब स्वतंत्रता सेनानी गोविंदभाई श्रॉफ और दूरदर्शी नेता स्वामी रामानंद तीर्थ ने नांदेड़ में खादी ग्रामोद्योग की नींव रखी थी. तब से यह संगठन स्थानीय रोजगार और राष्ट्रीय गौरव का आधार बन गया है.
कार्यालय अधीक्षक ज्ञानोबा सोलंके के मुताबिक ध्वज निर्माण एक जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया है जो महीनों पहले शुरू हो जाती है. इसकी शुरुआत बिना उपचारित खादी के कपड़े से होती है, जिसे पहले Ahmedabad स्थित बीएमसी मिल, जो एक सरकारी मान्यता प्राप्त सुविधा है, में राष्ट्रीय ध्वज के तीनों रंगों में बुनाई के लिए भेजा जाता है.
भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा निर्धारित विनिर्देशों के आधार पर कठोर गुणवत्ता जांच के बाद, झंडों को अशोक चक्र की स्क्रीन प्रिंटिंग, कटिंग और सिलाई के लिए वापस भेज दिया जाता है.
निर्माण प्रक्रिया की एक अनूठी विशेषता झंडों को बांधने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विशेष ‘गर्दी’ रस्सी है. यह रस्सी हल्दी, सागौन, साल और शीशम जैसी लकड़ियों के मिश्रण से बनाई जाती है और Mumbai से मंगवाई जाती है. पूरे उत्पादन चक्र में कम से कम दो महीने लगते हैं, इसलिए पहले से योजना बनाना जरूरी है.
नांदेड़ विनिर्माण इकाई के प्रबंधक महाबलेश्वर मठपति ने के साथ बातचीत में महत्वपूर्ण जानकारी दी. उन्होंने कहा कि हमारा संगठन 1962 में शुरू हुआ और हम 1993 से राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण कर रहे हैं. केंद्र सरकार कपास की आपूर्ति करती है. हमारी एक शाखा उदगीर, लातूर में है, जहां 250 कताई करने वाले और बुनकर कपड़ा तैयार करते हैं. फिर इस कपड़े को नांदेड़ लाया जाता है, रंगाई और विरंजन के लिए गुजरात भेजा जाता है, और अंत में छपाई और सिलाई के लिए नांदेड़ वापस लाया जाता है.
इस साल अब तक नांदेड़ इकाई में विभिन्न आकारों के 10 हजार से ज्यादा राष्ट्रीय ध्वज बनाए जा चुके हैं. 8 अगस्त तक, 50 लाख रुपए के झंडे बिक चुके हैं, और इस साल इकाई का कारोबार 1.5 करोड़ रुपए को पार करने की ओर अग्रसर है. स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के नजदीक आते ही हर साल मांग बढ़ जाती है.
झंडों का आकार उनके इच्छित उपयोग के आधार पर भिन्न होता है. सबसे बड़ा झंडा, जिसका आकार 14×21 फीट है, मंत्रालयों और लाल किले जैसी सरकारी इमारतों पर लगाया जाता है. 8×12 फीट का झंडा आमतौर पर जिला कलेक्टर कार्यालयों में, 6×9 फीट का कमिश्नर कार्यालयों में और 4×6 फीट का तहसील कार्यालयों में इस्तेमाल किया जाता है. छोटे झंडे स्कूलों और कॉलेजों में वितरित किए जाते हैं.
देश में केवल चार केंद्र महाराष्ट्र में नांदेड़ और Mumbai , कर्नाटक में हुबली और मध्य प्रदेश में ग्वालियर ही लाल किले के लिए झंडे बनाने के लिए आधिकारिक तौर पर अधिकृत हैं.
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एएसएच/एबीएम