मुंबई, 29 जून . उद्योग विशेषज्ञों की मानें तो देश में डेटा सेंटर की क्षमता वित्त वर्ष 2022 में 870 मेगावाट से दोगुनी होकर वित्त वर्ष 2025 तक लगभग 1,700-1,800 मेगावाट होने की संभावना है. इस ‘मेड इन इंडिया’ सॉवरेन क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से राष्ट्रीय सुरक्षा और बेहतर होने के साथ डाटा का प्रसार लोगों तक बेहतर तरीके से हो पाएगा.
वर्तमान में अमेरिका और चीन की संयुक्त डेटा के मुकाबले भारत के पास अधिक डाटा क्षमता है.
औसत डेटा खपत जो कुछ साल पहले तक लगभग 300 एमबी थी, पहले ही 25 जीबी प्रति माह हो गई है और 2028 तक हम हर डाटा उपयोगकर्ता के हिसाब से प्रति माह लगभग 62 जीबी प्रति उपयोगकर्ता पर पहुंच जाएंगे. जो प्रति व्यक्ति डाटा खपत के मामले में दुनिया में सबसे ज्यादा हो जाएगा.
डेटासेंटर पर एसोचैम नेशनल काउंसिल के अध्यक्ष सुनील गुप्ता ने कहा, “देश में डिजिटल रूझान बढ़ता जा रहा है और यही वजह है कि भारत दुनिया की बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था से आगे निकल कर पहली डिजिटल अर्थव्यवस्था बन गया है.”
2013-14 में लगभग 200 मेगावाट से बढ़कर, भारत अब 1200 मेगावाट तक पहुंच गया है.
वहीं इसको लेकर सुनील गुप्ता जो योट्टा डेटा सर्विसेज के सह-संस्थापक, एमडी और सीईओ भी हैं ने कहा कि ”2027 तक हमें 2,000 मेगावाट डाटा तक पहुंच जाने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि एक सॉवरेन क्लाउड यह सुनिश्चित करता है कि भारत के भीतर उत्पन्न डेटा देश की सीमाओं के भीतर रहे और स्थानीय कानून और नियम द्वारा पूरी तरह से संरक्षित रहे.”
2025 तक भारतीय सॉफ्टवेयर-ऐज-अ-सर्विस(सास) बाजार बढ़कर 35 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, डेटा सेंटर इस वृद्धि में योगदान देगा.
निरंजन हीरानंदानी, पूर्व अध्यक्ष एसोचैम और सीएमडी, हीरानंदानी ग्रुप ऑफ कंपनीज ने कहा कि ”जहां तक देश का सवाल है, विकास अनिवार्य है. जिस पर हमें वास्तव में ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, वह यह है कि भारतीयों के जीवन को कैसे बेहतर बनाना है.”
एसोचैम नेशनल काउंसिल ऑन डेटासेंटर के सह-अध्यक्ष सुरजीत चटर्जी के अनुसार, डेटा सेंटर बाजार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी के मामले में मुंबई सबसे आगे है, इसके बाद चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलुरु हैं.
उन्होंने कहा, “अब हम टियर 2 और टियर 3 बाजारों में जा रहे हैं.”
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