रेसिंग के तीन विभिन्न प्रारूपों में होगी भारतीय नौसेना नौकायन चैम्पियनशिप

नई दिल्ली, 14 अक्टूबर . भारतीय नौसेना की सबसे बड़ी नौकायन प्रतियोगिता, ‘भारतीय नौसेना नौकायन चैम्पियनशिप’ आयोजित होने जा रही है. ‘भारतीय नौसेना नौकायन चैम्पियनशिप’ (आईएनएससी) 16 अक्टूबर से प्रारंभ होगी और 19 अक्टूबर तक तक यह प्रतियोगिता जारी रहेगी. इस प्रतियोगिता का आयोजन भारतीय नौसेना अकादमी (आईएनए), एझिमाला में किया जाएगा.

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक प्रतियोगिता में भाग लेने वाले भारतीय नौसेना के 100 से अधिक प्रतिभागी हैं. इनकी मेजबानी और रेसिंग के तीन विभिन्न प्रारूपों में पांच विभिन्न वर्गों की नौकाओं में नौकायन कौशल का परीक्षण होगा. यह परीक्षण आईएनए स्थित मरक्कर वाटरमैनशिप प्रशिक्षण केंद्र (एमडब्ल्यूटीसी) द्वारा किया जाएगा.

भारतीय नौसेना नौकायन चैम्पियनशिप (आईएनएससी) एक वार्षिक अंतर कमान कार्यक्रम है. इसका आयोजन नौसेना मुख्यालय स्थित भारतीय नौसेना नौकायन संघ (आईएनएसए) के तहत प्रतिस्पर्धी नौकायन में नौसेना कर्मियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है.

रक्षा मंत्रालय का कहना है कि इस प्रतियोगिता में नौसेना की तीनों कमानों के अधिकारी, कैडेट और नाविकों व अग्निवीरों की टीमें भाग लेंगी. नौकायन के चार सबसे लोकप्रिय प्रारूपों में रेसिंग होगी. महिलाओं के लिए फ्लीट रेसिंग इंटरनेशनल लेजर क्लास एसोसिएशन (आईएलसीए-6) क्लास बोटिंग होगी. पुरुषों के लिए आईएलसीए -7 क्लास बोट और विंडसर्फिंग ओपन बिक बीच क्लास बोटिंग होगी. टीम रेसिंग एंटरप्राइज क्लास बोट में होगी.

रक्षा मंत्रालय का कहना है कि भारतीय नौसेना जल कौशल गतिविधियों पर विशेष जोर देती है. नौकायन खेल, नौसेनिकों में नौचालन कौशल, सौहार्द, साहस और अन्य नेतृत्व गुणों को विकसित करने के लिए है.

गौरतलब है कि हाल ही में भारतीय नौसेना की दो महिला अधिकारी ‘नाविका सागर परिक्रमा’ अभियान के जरिए दुनिया का चक्कर लगाने के असाधारण मिशन पर निकली हैं.

भारतीय नौसेना के नौकायन पोत तारिणी पर 2 अक्टूबर को ये दो साहसी महिला अधिकारी लेफ्टिनेंट कमांडर दिलना के. और लेफ्टिनेंट कमांडर रूपा ए. के. इस चुनौतीपूर्ण अभियान पर रवाना हुई हैं. इस ऐतिहासिक यात्रा को नेवल ओशन सेलिंग नोड, आईएनएस मंडोवी, गोवा से हरी झंडी दिखाई थी. रक्षा मंत्रालय का कहना है कि 8 महीने की अवधि में ये दोनों बिना किसी बाहरी सहायता के केवल पवन ऊर्जा पर निर्भर होकर करीब 40,000 किलोमीटर की समुद्री दूरी तय करेंगी.

जीसीबी/एएस