कनाडा से द‍िल्‍ली बुलाए गए भारत के उच्‍चायुक्‍त ने कहा, कनाडा सरकार का आरोप राजनीत‍ि से प्रेरि‍त

ओटावा, 21 अक्टूबर . कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की भारत के प्रति जारी “शत्रुता” के बीच नई दिल्ली द्वारा कनाडा से वापस बुलाए जाने पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में वरिष्ठ राजनयिक और उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा ने ओटावा द्वारा लगाए गए आरोपों को “राजनीति से प्रेरित” बताया.

पिछले साल खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की कथित संलिप्तता के बारे में कनाडाई सरकार द्वारा कोई सबूत पेश नहीं किया गया.

वर्मा ने देश से रवाना होने से पहले कनाडा के सीटीवी से कहा, “कुछ भी नहीं. कोई सबूत पेश नहीं किया गया. यह राजनीति से प्रेरित है.”

इस सप्ताह के आरंभ में भारत ने कनाडा से अपने उच्चायुक्त और अन्य राजनयिकों एवं अधिकारियों को वापस बुलाने का निर्णय लिया था

तथाकथित चल रही जांच में शामिल होने से भारत के इनकार के बारे में पूछे जाने पर वर्मा ने कनाडाई नेटवर्क को यह बताया कि, “अगर ट्रूडो या उनके सहयोगियों को इसके बारे में पता है, तो क्या आरोप पत्र दाखिल न करना अपराध नहीं है? क्या न्यायिक प्रक्रिया का पालन न करना अपराध नहीं है? वे किस आधार पर मुझसे सवाल करना चाहते हैं. अगर उदाहरण के लिए आप एक प्रतिवादी हैं, जो कि मैं नहीं हूं, तो आपके साथ साक्ष्य साझा किए जाएंगे और ऐसा तब भी होता है, जब आप किसी छोटे अपराध के लिए पकड़े जाते हैं. यदि मैं पूछताछ के लिए जा रहा हूं तो मुझे यह जानना होगा कि मुझसे किस लिए पूछताछ की जा रही है. मुझे यह जानने की जरूरत है कि आपके पास क्या सबूत हैं इसलिए मैं तैयार होकर जाता हूं.”

विदेश मंत्रालय (एमईए) ने वर्मा पर आक्षेप लगाने के लिए ओटावा की आलोचना की थी. वर्मा भारत के सबसे वरिष्ठ राजनयिकों में से एक हैं, जिनका 36 वर्षों का विशिष्ट करियर रहा है और जो जापान और सूडान में राजदूत रह चुके हैं, और इटली, तुर्की, वियतनाम और चीन में भी सेवा दे चुके हैं.

उन्होंने वर्मा पर आक्षेप लगाने को “हास्यास्पद” बताया था, जो अवमानना ​​के योग्य था.

साक्षात्कार के दौरान वर्मा ने स्पष्ट किया कि भारत सरकार ने कभी भी किसी व्यक्ति को जान से मारने के इरादे से निशाना नहीं बनाया है.

नई दिल्ली लंबे समय से यह दावा करती रही है कि ट्रूडो सरकार ने कनाडा में भारतीय राजनयिकों और सामुदायिक नेताओं को परेशान करने, धमकाने और भयभीत करने के लिए हिंसक चरमपंथियों और आतंकवादियों को “जानबूझकर” स्थान प्रदान किया है.

14 अक्टूबर को वर्मा और अन्य राजनयिकों को वापस बुलाने के अपने निर्णय की घोषणा करते हुए भारत ने इस बात पर जोर दिया था कि उग्रवाद और हिंसा के माहौल में उसे वर्तमान कनाडाई सरकार की उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता पर कोई भरोसा नहीं है.

वर्मा ने सीटीवी से कहा, “पहला बिंदु यह है कि मुझे सबूत दिखाएं और मैं पहले दिन से ही इस बारे में बात कर रहा हूं. साथ ही हम जानना चाहते हैं कि खालिस्तानी तत्व कनाडा में क्या कर रहे हैं. हां, हमें यह जानना होगा. यह हमारा राष्ट्रीय हित है और कनाडा के साथ हमारी मुख्य चिंता है, जो भारतीय क्षेत्र को तोड़ने की कोशिश कर रहा है. इसलिए, अगर कनाडाई राजनेता इतने नौसिखिए हैं कि वे चाहते हैं कि मुझे पता न चले कि मेरे दुश्मन यहां क्या कर रहे हैं, तो वे नहीं जानते कि अंतरराष्ट्रीय संबंध क्या होते हैं.”

बुधवार को देश की विदेशी हस्तक्षेप जांच के समक्ष गवाही देते हुए ट्रूडो ने स्वीकार किया था कि ओटावा के पास कुछ खुफिया जानकारी थी, लेकिन निज्जर की हत्या का भारत पर आरोप लगाने से पहले उसके पास कोई ठोस सबूत नहीं था.

ट्रूडो ने समिति के समक्ष कैमरे के सामने हुई सुनवाई में स्वीकार किया कि, “उस समय, यह मुख्यतः खुफिया जानकारी थी, ठोस साक्ष्य नहीं.”

दिलचस्प बात यह है कि ट्रूडो देश और विदेश में मुश्किल हालात में चल रहे हैं, उनकी अपनी पार्टी के कई नेता और कई संसद सदस्य सार्वजनिक रूप से उनके नेतृत्व पर असंतोष व्यक्त करने से आगे बढ़ने और आने वाले समय में आधिकारिक तौर पर उनके इस्तीफे की मांग करने के लिए तैयारी कर रहे हैं.

गुरुवार को कनाडाई मीडिया ने बताया कि कम से कम 20 सांसदों ने ट्रूडो को पद से हटाने की मांग पर अपना नाम देने पर सहमति व्यक्त की है. ऐसा प्रतीत होता है कि यह कदम ट्रूडो को पद से हटाने के लिए “जल्दी ही एक गंभीर प्रयास में बदल रहा है.”

भारत ने कई बार यह स्पष्ट किया है कि ट्रूडो राजनीतिक लाभ के लिए भारत को बदनाम करने की “जानबूझकर रणनीति” पर काम कर रहे हैं.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार को कहा, “आज हमने जो सुना है, उससे वही बात पुष्ट होती है जो हम लगातार कहते आ रहे हैं. कनाडा ने भारत और भारतीय राजनयिकों के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोपों के समर्थन में कोई भी सबूत पेश नहीं किया है. इस लापरवाह व्यवहार के कारण भारत-कनाडा संबंधों को जो नुकसान पहुंचा है, उसकी जिम्मेदारी अकेले प्रधानमंत्री ट्रूडो की है.”

एकेएस/