Mumbai , 25 जुलाई . महाराष्ट्र के पूर्व Chief Minister और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने भारत और यूके के बीच हाल ही में हुए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर बड़ा बयान दिया है. चव्हाण ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों ने डब्ल्यूटीओ को कमजोर कर दिया है, जिसे कभी अमेरिका ने ही वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने के लिए बनाया था.
उन्होंने कहा, “ट्रंप ने डब्ल्यूटीओ को तोड़-मरोड़ दिया है. बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था को कमजोर कर दिया गया है, इसलिए अब भारत जैसे देशों को द्विपक्षीय समझौते करने पड़ रहे हैं.”
भारत-यूके एफटीए को इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताते हुए उन्होंने कहा कि यह समझौता दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगा. इस समझौते के तहत ब्रिटिश ऑटोमोबाइल्स और स्कॉच व्हिस्की जैसी वस्तुओं पर आयात शुल्क को कम करने का प्रावधान है, जिससे भारत में ये उत्पाद सस्ते होंगे. ट्रंप की टैरिफ नीतियां वैश्विक व्यापार को नुकसान पहुंचा सकती हैं, क्योंकि इससे आयात शुल्क बढ़ाकर अमेरिकी खजाने को लाभ पहुंचाने की उनकी सोच गलत साबित हो सकती है.
पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि भारत-यूके एफटीए से भारतीय टेक्सटाइल, समुद्री उत्पाद, रत्न-आभूषण और कृषि उत्पादों को ब्रिटिश बाजार में बेहतर पहुंच मिलेगी, जिससे किसानों, मछुआरों और एमएसएमई क्षेत्र को लाभ होगा. समझौते के पूर्ण विवरण सामने आने पर ही इसका वास्तविक प्रभाव स्पष्ट होगा.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे पर पृथ्वीराज चव्हाण ने गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि धनखड़ का स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा देने का दावा विश्वसनीय नहीं है. अगर स्वास्थ्य कारण होता, तो राज्यसभा सत्र शुरू होने से पहले इस्तीफा दे देते. यह भी हो सकता है कि जगदीप धनखड़ को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया हो, और इस्तीफा पत्र भी किसी और ने तैयार किया होगा. यह कोई साधारण मामला नहीं है. कुछ तो दाल में काला है.”
पृथ्वीराज चव्हाण ने धनखड़ के पश्चिम बंगाल के राज्यपाल कार्यकाल को विवादास्पद बताते हुए कहा कि उन्होंने इस दैरान किस तरह से काम किया, यह सब जानते है. बंगाल में उनके कार्यकाल में जनतंत्र का गला घोंटा गया, उसके बाद पीएम मोदी ने उन्हें उपराष्ट्रपति बना दिया.
उन्होंने जस्टिस वर्मा मामले में कहा, “जगदीप धनखड़ और जस्टिस वर्मा के बीच क्या हुआ, क्या यह मामला सिर्फ यहीं तक सीमित है या भाजपा में गहरा गतिरोध है? दिल्ली में चर्चाएं हैं कि भाजपा में कुछ बड़े बदलाव हो सकते हैं. धनखड़ जल्द ही इस मामले की असलियत सामने लाएंगे.”
महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. पूर्व Chief Minister पृथ्वीराज चव्हाण ने मराठी को शास्त्रीय (क्लासिकल) भाषा का दर्जा देने में हुई देरी और मौजूदा सरकार की नीतियों पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने कहा कि 2004 में यूपीए सरकार के सत्ता में आने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने क्लासिकल भाषा की प्रस्ताव तैयार किया. इसके तहत तमिल को पहली शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला, जिसके बाद संस्कृत, मलयालम समेत अन्य भाषाओं को यह मान्यता दी गई.
उन्होंने आगे कहा कि जब मैं 2010 में महाराष्ट्र के Chief Minister बने, तो उन्होंने मराठी भाषा विभाग की समीक्षा के दौरान पाया कि मराठी को शास्त्रीय दर्जा दिलाने के लिए कोई कार्यवाही नहीं हुई थी. उसके बाद तुरंत रंगनाथ पाठारे की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसने 2013 में मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए प्रस्ताव तैयार किया. यह प्रस्ताव मराठी में था, जिसे अंग्रेजी में अनुवाद कर केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय को सौंपा गया. तत्कालीन मंत्री शैलजा को यह प्रस्ताव सौंपते हुए चव्हाण ने साहित्य अकादमी से इसकी जांच जल्द करने की गुजारिश की थी. साहित्य अकादमी ने 2013 में मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की सिफारिश की, लेकिन केंद्र में सरकार बदलने के बाद यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया.
पृथ्वीराज चव्हाण ने मौजूदा Chief Minister देवेंद्र फडणवीस से सवाल किया कि दस साल तक इस प्रस्ताव पर फॉलो-अप क्यों नहीं किया गया? 2024 में मराठी को शास्त्रीय दर्जा मिला, लेकिन इस देरी का जिम्मेदार कौन है? मराठी भाषा के लिए दिल्ली में एक मजबूत अध्यासन स्थापित करने के लिए 25-40 करोड़ रुपये का फंड देना चाहिए. सरकार केवल वोट बैंक की राजनीति कर रही है.
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एकेएस