भारत निष्क्रिय नहीं है, हम जरुरत पड़ने पर प्रतिक्रिया देंगे : एस जयशंकर

नई दिल्ली, 30 अगस्त . विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाना हमेशा “प्रगति पर काम” रहेगा.

उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है. चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक हो.

विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान पाकिस्तान को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ बातचीत का दौर खत्म हो गया है. उन्होंने कहा कि हर एक्शन का रिएक्शन होता है. भारत निष्क्रिय नहीं है. विदेश मंत्री नेआगे कहा कि हम जरुरत पड़ने पर प्रतिक्रिया देंगे.

विदेश मंत्री ने कहा, ‘पाकिस्तान के साथ निर्बाध बातचीत का दौर ख़त्म हो गया है, जहां तक जम्मू-कश्मीर का सवाल है, धारा 370 खत्म हो गई है तो मुद्दा यह है कि हम पाकिस्तान के साथ किस तरह के रिश्ते पर विचार कर सकते हैं, ऐसे में अब सवाल ये है कि हम पाकिस्तान के साथ कैसे रिश्ते चाहते हैं?

जयशंकर ने आगे कहा कि हम चुप नहीं बैठेंगे. घटनाक्रम चाहे अच्छा हो या बुरा, हम उस पर प्रतिक्रिया देंगे.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस कार्यक्रम में कहा कि, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से, हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं. यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ व्यवहार करेंगे. हमें यह भी पहचानना ​​होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं. हमें हितों की पारस्परिकता की तलाश करनी होगी.”

श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के बारे में जयशंकर ने स्वीकार किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है.

“इस समय, दो समस्याएं हैं. एक सार्वजनिक क्षेत्र में, जो अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा से संबंधित है, मछली पकड़ने का मुद्दा जो एक आवर्ती मुद्दा है. और दूसरा एक रणनीतिक राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य से चीन का श्रीलंका के संबंध में उपस्थिति और गतिविधियां भी शानिल है.

हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका में भारत के बारे में जनता की धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है.

जयशंकर ने कहा, “यह इस तथ्य पर केंद्रित है कि जब वे इतने गहरे संकट में थे, तो हम वास्तव में एकमात्र देश था, जो आगे आया और बड़े पैमाने पर और समय पर आगा आया. इसलिए अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम है तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते हैं.”

विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं.

“हमने 1988 में हस्तक्षेप किया था लेकिन फिर भी 2012 में जब सरकार बदली तो हम बहुत निष्क्रिय थे. इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है. यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है क्योंकि वे कुछ और अस्थिर स्थिति में हैं, जहां उनकी अपनी संभावनाएं चिंतित हैं, खासकर आर्थिक चुनौतियों के संदर्भ में.”

विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है.

उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं और हमारे सामने मौजूद किसी भी विरासत में मिली जानकारी से भ्रमित नहीं हैं. हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफ़गानिस्तान से बहुत अलग है.”

एकेएस