नई दिल्ली, 4 जुलाई . तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा द्वारा हाल ही में दिए गए बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारत ने शुक्रवार को कहा कि वह आस्था और धर्म की मान्यताओं और प्रथाओं से संबंधित मामलों पर कोई रुख नहीं अपनाता है और न ही बोलता है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस मुद्दे पर मीडिया के सवालों के जवाब में कहा, “हमने दलाई लामा इंस्टीट्यूशन की निरंतरता के बारे में दलाई लामा के दिए गए बयान से संबंधित रिपोर्ट देखी हैं. भारत सरकार आस्था और धर्म की मान्यताओं और प्रथाओं से संबंधित मामलों पर न तो कोई रुख अपनाती है और न ही कुछ बोलती है. सरकार ने हमेशा भारत में सभी के लिए धार्मिक स्वतंत्रता को बरकरार रखा है और आगे भी ऐसा करती रहेगी.”
निर्वासित तिब्बती आध्यात्मिक नेता अपने 90वें जन्मदिन के करीब पहुंच रहे हैं. उन्होंने बुधवार को जोर देकर कहा कि 15वां पुनर्जन्म होगा. यह उनके निधन के बाद 600 साल पुरानी संस्था की निरंतरता पर पहली महत्वपूर्ण घोषणा है. अपने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नेतृत्व के भविष्य को लेकर चिंतित दुनिया भर के अनुयायियों को आश्वस्त करते हुए दलाई लामा ने कहा कि उनका कार्यालय, गादेन फोडरंग ट्रस्ट, पुनर्जन्म पर एकमात्र प्राधिकारी है, जबकि चीन ने जोर देकर कहा कि अंतिम निर्णय उसी का होगा.
तिब्बती आध्यात्मिक नेता द्वारा अपने उत्तराधिकार को चुनने में बीजिंग के अधिकार को खारिज करने के कुछ घंटे बाद चीन ने कहा कि पुनर्जन्म को चीनी शासन द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए और पहचान चीन में ही होनी चाहिए. साथ ही, कथित पुनर्जन्म को धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक परंपराओं का पालन करना चाहिए, और चीनी कानूनों और विनियमों का भी पालन करना चाहिए.
हालांकि, मैक्लोडगंज में मुख्यालय वाले केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के प्रवक्ता तेनजिन लक्षेय ने स्पष्ट किया कि किसी भी तिब्बती धार्मिक नेता के पुनर्जन्म की प्रक्रिया में चीन की कोई भूमिका नहीं है. उन्होंने मीडिया से कहा, “चीनी सरकार आस्था का उल्लंघन करती है.”
उत्तरी पहाड़ी शहर धर्मशाला के उपनगरीय इलाके में स्थित एक छोटे और अनोखे हिल स्टेशन मैक्लोडगंज में तीन दिवसीय बौद्ध धार्मिक सम्मेलन की शुरुआत में एक बहुप्रतीक्षित बयान में दलाई लामा ने कहा, “24 सितंबर 2011 को तिब्बती आध्यात्मिक परंपराओं के प्रमुखों की एक बैठक में मैंने तिब्बत में और उसके बाहर रहने वाले साथी तिब्बतियों, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायियों और तिब्बत और तिब्बतियों से संबंध रखने वाले लोगों के समक्ष एक बयान दिया था कि क्या दलाई लामा की संस्था जारी रहनी चाहिए.”
उन्होंने कहा, “मैंने 1969 में ही स्पष्ट कर दिया था कि संबंधित लोगों को यह तय करना चाहिए कि भविष्य में दलाई लामा के पुनर्जन्म को जारी रखना चाहिए या नहीं. मैंने यह भी कहा कि जब मैं लगभग नब्बे वर्ष का हो जाऊंगा, तो मैं तिब्बती बौद्ध परंपराओं के उच्च लामाओं, तिब्बती जनता और तिब्बती बौद्ध धर्म का पालन करने वाले अन्य संबंधित लोगों से परामर्श करूंगा ताकि यह पुनर्मूल्यांकन किया जा सके कि दलाई लामा की संस्था को जारी रखना चाहिए या नहीं. हालांकि मैंने इस मुद्दे पर कोई सार्वजनिक चर्चा नहीं की है, लेकिन पिछले 14 वर्षों में तिब्बत की आध्यात्मिक परंपराओं के नेताओं, निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्यों, विशेष आम सभा की बैठक में भाग लेने वालों, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सदस्यों, गैर सरकारी संगठनों, हिमालयी क्षेत्र, मंगोलिया, रूसी संघ के बौद्ध गणराज्यों और मुख्य भूमि चीन सहित एशिया के बौद्धों ने मुझे कारणों के साथ पत्र लिखकर दलाई लामा की संस्था को जारी रखने का आग्रह किया है.”
उन्होंने कहा, “विशेष रूप से मुझे तिब्बत में रहने वाले तिब्बतियों से विभिन्न माध्यमों से संदेश प्राप्त हुए हैं, जिनमें यही अपील की गई है. इन सभी अनुरोधों के अनुसार, मैं पुष्टि करता हूं कि दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी.”
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता दलाई लामा 6 जुलाई को 90 वर्ष के हो रहे हैं. उन्होंने संदेश में स्पष्ट किया कि भावी दलाई लामा को मान्यता देने की प्रक्रिया सितंबर 2011 के बयान में स्पष्ट रूप से स्थापित की गई है, जिसमें कहा गया है कि ऐसा करने की जिम्मेदारी केवल गादेन फोडरंग ट्रस्ट के सदस्यों पर होगी.
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एएसएच/एकेजे