इस बजट में महीने में 75 हजार से ज्यादा कमाने वालों को फायदा : डीएमके सांसद तिरुचि शिवा

चेन्नई, 1 फरवरी, . तमिलनाडु में डीएमके के राज्यसभा सांसद तिरुचि एन शिवा ने आम बजट पर निराशा व्यक्त की. उन्होंने कहा कि इस देश में 140 करोड़ की आबादी है. इनमें से 7.5 करोड़ लोग टैक्स देते हैं, और 2.5 करोड़ लोग आयकर देते हैं. ऐसे में सरकार के द्वारा प्रचारित 12 लाख तक की आयकर छूट किसके लिए फायदेमंद है? यह केवल उन्हीं के लिए फायदेमंद है, जो महीने में 75,000 रुपये कमाते हैं.

उन्होंने कहा, “इस देश में गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) उसे माना गया है, जो रोजाना ग्रामीण क्षेत्रों में 27 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 33 रुपये तक कमा रहा है. अब ऐसे व्यक्ति के जीवन का क्या होगा जो शहरी क्षेत्र में 1,000 रुपये और ग्रामीण क्षेत्र में 800 रुपये महीने कमाता है? वह जीवन कैसे जीएगा? उसके परिवार का क्या होगा? गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए कौन सी योजनाएं घोषित की गई हैं? पहले ही हम कह रहे हैं कि इस देश में धन का वितरण समान नहीं है. देश की 1 प्रतिशत आबादी 50 प्रतिशत धन का आनंद ले रही है, और 50 प्रतिशत आबादी के पास केवल 3 प्रतिशत धन है. ऐसे में लोग कैसे खुशहाल होंगे. बजट में मनरेगा के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है.”

उन्होंने कहा, ” इस देश में मुद्रास्फीति बहुत ज्यादा है. राष्ट्रीय औसत की तुलना में तमिलनाडु की प्रति व्यक्ति आय कम है. तमिलनाडु विनिर्माण, कृषि और सेवा क्षेत्र में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन बजट में उसके लिए कुछ नहीं कहा गया है. वित्त मंत्री ने बजट में पुरातत्व को बहुत सराहा है, लेकिन हाल ही में तमिलनाडु में खुदाई से पता चला है कि धातु युग यहां 5,370 साल पहले शुरू हुआ था, जिसे अमेरिका के शोधकर्ताओं ने भी स्वीकार किया है, लेकिन केंद्र सरकार उसका संज्ञान नहीं ले रही है.”

उन्होंने कहा, “हमारी सबसे बड़ी चिंता रोजगार है, लेकिन केंद्र सरकार के पास इसके सृजन के लिए कोई योजना नहीं है. रोजगार इस घनी आबादी वाले देश की सबसे बड़ी जरूरत है. दूसरा, बजट में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए कोई योजना नहीं है, किसानों के लिए कुछ नहीं है, कृषि मजदूरों के लिए कुछ नहीं है. केवल एक चीज जिसकी वे बात कर सकते हैं, वह है 12 लाख तक आयकर की छूट. लेकिन यह भी केवल एक वर्ग के लोगों के लिए फायदेमंद होगा, और वे भी उसे खर्च करने के लिए मजबूर होंगे, उसे बचा नहीं पाएंगे. परिवारों में बचत घट गई है. इसलिए यह बजट पूरी आबादी को ध्यान में नहीं रखता, यह केवल आंकड़ों पर आधारित है. पहले के आंकड़े वास्तविकता में नहीं आए.”

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