यादों में कानन : भारत की पहली फीमेल सुपरस्टार, दुनिया को कहा ‘तूफान मेल…’

New Delhi, 16 जुलाई . जब भी भारतीय सिनेमा में सुपरस्टार की बात होती है, तो अक्सर पुरुष कलाकारों का नाम लिया जाता है. लेकिन, इनके बीच एक ऐसी महिला थीं, जिन्होंने बंगाली सिनेमा में पहली सुपरस्टार का खिताब हासिल किया और उन्हें ‘मेलोडी क्वीन’ के नाम से जाना गया. यह कहानी है भारतीय सिनेमा की महान अभिनेत्री, गायिका और फिल्म निर्माता कानन देवी की. उनकी अद्भुत प्रतिभा, मधुर आवाज, भावपूर्ण अभिनय और साहसी व्यक्तित्व ने उन्हें दर्शकों के दिलों में अमर बना दिया.

कानन देवी ने न केवल अभिनय और गायिकी में नाम कमाया, बल्कि ‘श्रीमती पिक्चर्स’ और ‘सब्यसाची कलेक्टिव’ जैसी संस्थाएं स्थापित कर महिलाओं के लिए फिल्म निर्माण में नई राह बनाई. पद्मश्री और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित कानन देवी की कहानी साहस, कला और समर्पण की मिसाल है.

पश्चिम बंगाल के हावड़ा में 22 अप्रैल, 1916 को जन्मीं कानन ने गरीबी से संघर्ष करते हुए प्रतिभा के दम पर सिनेमा जगत में शोहरत हासिल की. उनका बचपन बहुत गरीबी में बीता. हालांकि, पिता की मौत के बाद उन्हें और उनकी मां को मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

बताया जाता है कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों के घर में नौकरानी के रूप में काम किया. जब कानन 10 साल की थीं तो उन्हें अपने एक दोस्त की मदद से मूक फिल्मों में काम करने का मौका मिला. उनकी पहली फिल्म जॉयदेव (1926) थी, जिसमें उन्हें केवल पांच रुपए मिले और यहीं से उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ.

कानन ने मूक फिल्मों से शुरुआत की और बोलती फिल्मों में अपनी अदाकारी से छाप छोड़ी. उन्होंने अपने फिल्मी करियर में ‘जोरेबरात’ (1931), ‘मां’ (1934), और ‘मनोमयी गर्ल्स स्कूल’ (1935) जैसी फिल्में कीं, जिन्होंने उन्हें शोहरत दिलाई. उनकी लाइफ का टर्निंग प्वाइंट उस समय आया, जब वह कोलकाता के ‘न्यू थिएटर्स’ के साथ जुड़ीं. इससे उनकी शोहरत में और भी इजाफा हुआ.

‘मुक्ति’ (1937) और ‘विद्यापति’ (1937) जैसी फिल्मों में उनके अभिनय और गायन ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया. ‘साथी’ (1938), ‘सपेरा’ (1939), ‘लगन’ (1941) और ‘जवाब’ (1942) जैसी फिल्मों में उनके अभिनय को बहुत सराहा गया. उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि उन्हें भीड़ से बचाने के लिए सुरक्षा की जरूरत पड़ती थी.

कानन की आवाज उनकी सबसे बड़ी ताकत थी. शुरू में बिना ट्रेनिंग के उन्होंने गायिकी में हाथ आजमाया, लेकिन बाद में उस्ताद अल्ला रक्खा और भीष्मदेव चटर्जी जैसे गुरुओं से संगीत सीखा. उन्होंने रवींद्र संगीत, नजरुल गीति और कीर्तन में महारत हासिल की. न्यू थिएटर्स के संगीतकार राय चंद बोराल ने उनकी हिंदी उच्चारण को बेहतर बनाने में मदद की. उनके गाने जैसे ‘है तूफान मेल’ (फिल्म जवाब, 1942) बहुत मशहूर हुए. उनकी आवाज में भारतीय और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत का सुंदर मिश्रण दिखाई देता था, जिसने उन्हें प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआती हस्तियों में से एक बनाया.

कानन देवी ने सिर्फ अभिनय और गायन तक खुद को सीमित नहीं रखा. उन्होंने ‘श्रीमती पिक्चर्स’ नाम से अपनी प्रोडक्शन कंपनी शुरू की और बाद में ‘सब्यसाची कलेक्टिव’ बनाया, जो बंगाली साहित्य पर आधारित फिल्में बनाता था. वह भारत की पहली महिला फिल्म निर्माता बनीं, जो उस समय एक क्रांतिकारी कदम था. उस दौर में महिलाओं के लिए फिल्म निर्माण में कदम रखना बहुत बड़ी बात थी, लेकिन कानन देवी ने अपने काम से समाज में महिलाओं की स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया.

अपने तीन दशक लंबे सिने करियर में उन्होंने बंगाली के अलावा हिंदी फिल्में भी कीं. कानन देवी ने 1948 में Mumbai (बंबई) का रुख किया था और उसी साल उनकी हिंदी फिल्म ‘चंद्रशेखर’ रिलीज हुई थी.

कानन देवी को भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए 1968 में ‘पद्मश्री’ और 1976 में ‘दादासाहेब फाल्के’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

कानन देवी ने सिनेमा की चकाचौंध भरी दुनिया में अपार सफलता हासिल की, लेकिन उनकी शादीशुदा जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए. उन्होंने दो शादियां कीं. उनकी पहली शादी 1940 में ब्रह्म समाज के प्रसिद्ध शिक्षाविद् हरम्बा चंद्र मैत्रा के बेटे अशोक मैत्रा से हुई, लेकिन उस दौर में अभिनेत्री का फिल्मों में काम करना समाज में अस्वीकार्य था, जिसके कारण इस शादी का तीव्र विरोध हुआ.

महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने जब कानन और अशोक को उपहार और आशीर्वाद दिया, तो ब्रह्म समाज ने उनकी भी कड़ी निंदा की. यह शादी 1945 में टूट गई, जिससे कानन को गहरा दुख हुआ. इसके बाद, उन्होंने हरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती से दूसरी शादी की, जिनसे उनका एक बेटा हुआ.

तीन दशक लंबे फिल्मी करियर में सफलता का स्वाद चखने वालीं कानन देवी का 17 जुलाई, 1992 को कोलकाता में उनका निधन हो गया.

एफएम/एबीएम