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दिसपुर, 27 नवंबर . असम विधानसभा में Thursday को बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने वाला विधेयक पारित कर दिया गया. इस बिल का मुख्य मकसद है छठी अनुसूची वाले आदिवासी क्षेत्रों को छोड़कर पूरे असम में बहुविवाह की प्रथा को गैरकानूनी घोषित करना और इसे समाप्त करना है.
Government का कहना है कि यह कदम समाज में समानता लाने और खासकर महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में बेहद जरूरी था.
इस नए विधेयक में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति दूसरी शादी करता है और उसका पहला जीवनसाथी जीवित हो और कानूनी तौर पर तलाक न हुआ हो तो इसे साफ तौर पर बहुविवाह माना जाएगा. आसान शब्दों में कहें तो अब छिपाकर शादी करना या पहली शादी को नजरअंदाज करना किसी भी सूरत में नहीं चलेगा. बिल में बहुविवाह करने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है. ऐसे मामलों में दोषी को 7 साल तक जेल हो सकती है और अगर कोई अपनी पहली शादी को छिपाकर दोबारा शादी करता है तो उसे 10 साल तक की जेल हो सकती है.
यहीं तक नहीं, इस बिल में उन महिलाओं को भी ध्यान में रखा गया है जो इस तरह की गैरकानूनी शादियों की वजह से परेशान होती हैं. विधेयक में प्रभावित महिलाओं के लिए मुआवजा और कानूनी सुरक्षा का प्रावधान किया गया है ताकि वे आर्थिक और सामाजिक रूप से सुरक्षित रह सकें. इसके अलावा अगर कोई पुजारी, परिवार वाला या कोई अन्य व्यक्ति ऐसे विवाह को करवाने में मदद करता है, तो उसे भी दो साल तक की सजा हो सकती है.
असम के Chief Minister हिमंत बिस्वा सरमा ने इस फैसले को महिलाओं के अधिकारों के लिए बड़ा अहम बताया. उन्होंने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर लिखा कि असम अब पूरी दृढ़ता के साथ आगे बढ़ रहा है और महिलाओं के अधिकारों से किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा कि ‘असम बहुविवाह निषेध विधेयक 2025’ के जरिए Government महिलाओं को कानूनी सुरक्षा और आरोपियों को कठोर दंड का पूरा भरोसा देती है.
उनका कहना है कि यह बदलाव सीधे तौर पर समाज सुधार से जुड़ा हुआ है. यह कदम उन राज्यों जैसा है जिन्होंने यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) पर काम शुरू कर दिया है. उत्तराखंड विधानसभा पहले ही इस तरह का कानून पास कर चुकी है. असम Government मानती है कि समाज में एकरूपता और महिलाओं के अधिकारों की मजबूती तभी आएगी, जब कानूनी तौर पर ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई हो.
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पीआईएम/वीसी