New Delhi, 6 अक्टूबर . Madhya Pradesh में कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत के बाद हुए विवाद पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने तीखी प्रतिक्रिया दी. आईएमए ने घटना को प्रशासनिक और नियामक निकायों की गंभीर लापरवाही का नतीजा बताया है और कहा कि डॉक्टर की गिरफ्तारी कानूनी अज्ञानता का उदाहरण है. संगठन ने प्रभावित परिवारों और डॉक्टर दोनों के लिए उचित मुआवजे की मांग की है.
आईएमए ने कहा कि Madhya Pradesh में कफ सिरप त्रासदी और उसे लिखने वाले डॉक्टर की गिरफ्तारी अधिकारियों और Police की कानूनी अज्ञानता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है. आईएमए वास्तविक दोषियों पर तत्काल कार्रवाई और प्रभावित परिवारों और बदनामी का शिकार हुए डॉक्टर को पर्याप्त मुआवजे की मांग करता है. Saturday को परासिया Police स्टेशन में कस्बे के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में तैनात एक शिशु रोग विशेषज्ञ और मेसर्स श्रीसन फार्मास्युटिकल्स, कांचीपुरम, तमिलनाडु के निदेशकों पर First Information Report दर्ज की गई. उन पर बीएनएस धारा 105 और 276 के साथ-साथ औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 27 (ए) के तहत मामला दर्ज किया गया है. बीएमओ की रिपोर्ट के तुरंत बाद जल्दबाजी में डॉक्टर की गिरफ्तारी, नियामक निकायों और संबंधित दवा कंपनी की गलतियों से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश को दर्शाती है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने अपने बयान में कहा कि दवा बनाने वाली कुछ कंपनियां खांसी के सिरप बनाने में महंगे और सुरक्षित ग्लिसरीन व प्रोपाइलीन ग्लाइकोल की जगह सस्ते, जहरीले पदार्थ जैसे औद्योगिक डीईजी और इथाइलीन ग्लाइकोल का इस्तेमाल कर सकती हैं. ये जहरीले पदार्थ दिखने में सुरक्षित सामग्री जैसे होते हैं, लेकिन अगर निर्माता और नियामक स्तर पर गुणवत्ता जांच में चूक हो, तो ये सिरप बच्चों में किडनी खराब होने या मृत्यु का कारण बन सकते हैं. पहले भी कई देशों में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं.डॉक्टर को यह पता नहीं होता कि कोई सिरप जहरीला है, जब तक कि मरीजों में इसके दुष्परिणाम सामने न आएं. इसलिए, ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए कड़े नियम और सख्त जांच जरूरी है.कई लोग बिना डॉक्टर की सलाह के दुकानों से खांसी के सिरप खरीद लेते हैं, जिससे जरूरत से ज्यादा बच्चे इनका सेवन करते हैं. ज्यादातर मामलों में खांसी और जुकाम बिना सिरप के भी ठीक हो जाते हैं. जब डॉक्टर सिरप लिखते हैं, तो वे बच्चे की स्थिति देखकर ऐसा करते हैं.
बयान में कहा गया कि 2003 की माशेलकर रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में नियामक प्रणाली की समस्याएं मुख्यतः राज्य और केंद्र स्तर पर अपर्याप्त या कमजोर औषधि नियंत्रण ढांचे, अपर्याप्त परीक्षण सुविधाओं, औषधि निरीक्षकों की कमी, प्रवर्तन में एकरूपता का अभाव, विशिष्ट नियामक क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित कर्मियों की कमी, डेटा बैंक का अभाव और सटीक जानकारी की अनुपलब्धता के कारण थीं. इस मामले में, सीडीएससीओ और एमपीएफडीए कथित कफ सिरप में डीईजी की सांद्रता की निगरानी करने में विफल रहे.
आईएमए ने कहा कि केंद्र और राज्य Governmentों का रवैया जनता में भरोसा बढ़ाने के बजाय परेशानी पैदा कर रहा है. एक डॉक्टर को गिरफ्तार करना, जिसे सक्षम प्राधिकरण द्वारा मंजूर दवा लिखने का अधिकार है, गलत संदेश देता है. देशभर के डॉक्टर इस तरह की कार्रवाई से डरे हुए हैं. यह स्पष्ट रूप से ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट की धारा 17 बी के तहत नकली दवा का मामला है, जिसमें दवा को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी अन्य पदार्थ से बदल दिया गया है. खांसी की सिरप की मंजूरी, उसकी गुणवत्ता और सामग्री की निगरानी पूरी तरह ड्रग नियामक प्रणाली के दायरे में आता है. एक बार दवा को मंजूरी मिलने और बाजार में उपलब्ध होने के बाद, रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर को इसे लिखने का पूरा अधिकार है. ड्रग कंट्रोलर का फार्मेसियों को मंजूर दवा की आपूर्ति रोकने का निर्देश देना उनकी योग्यता और अधिकार क्षेत्र से बाहर है. पहले भी कंट्रोलर ने कुछ दवाओं को केवल विशिष्ट विशेषज्ञताओं तक सीमित करने के लिए ऐसी सलाह दी थी, जो ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट के दायरे से बाहर सत्ता का दुरुपयोग है.
आईएमए ने आगे कहा कि वह देश में औषधि नियामक प्रणाली की अक्षमता और अपर्याप्तता तथा इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना से निपटने में हुई लापरवाही से चिंतित है. इन असहाय बच्चों की मौत का ज़िम्मेदार पूरी तरह से दवा निर्माताओं और अधिकारियों पर है. चिकित्सा पेशे को धमकाना अनुचित है और इसका विरोध किया जाएगा.
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पीएसके