पाकिस्तान में असीम मुनीर बना सैन्य शासन का चेहरा (आईएएनएस विश्लेषण)

इस्लामाबाद, 4 अगस्त . फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने हाल ही में चीन का दौरा किया. उनका यह दौरा स्पष्ट संदेश देता है कि असीम मुनीर केवल सेना प्रमुख नहीं हैं, बल्कि देश के वास्तविक राष्ट्राध्यक्ष, विदेश मंत्री, और आर्थिक रणनीतिकार भी हैं.

असीम मुनीर, बीजिंग से लेकर वाशिंगटन तक अंतरराष्ट्रीय मंच पर अब पाकिस्तान का सबसे प्रमुख चेहरा बन गए हैं. पहले विदेश नीति और कूटनीति का जिम्मा नागरिक नेताओं के पास होता था, लेकिन अब मुनीर नियमित रूप से विश्व की प्रमुख शक्तियों के राष्ट्राध्यक्षों और मंत्रियों से मिलते हैं. जून में वाशिंगटन में उन्हें राष्ट्रपति जैसा सम्मान मिला, जहां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उनके लिए औपचारिक भोज आयोजित किया.

पाकिस्तानी सेना के इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) द्वारा जारी बयान के अनुसार, 25 जुलाई को बीजिंग में उन्होंने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग, विदेश मंत्री वांग यी और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की, जिसमें क्षेत्रीय सुरक्षा से लेकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के भविष्य तक के मुद्दों पर चर्चा हुई.

वाशिंगटन और बीजिंग, पाकिस्तान के सबसे महत्वपूर्ण ‘सहयोगी’ देशों में मुनीर को ही असली प्रतिनिधि माना जा रहा है, जिससे शहबाज शरीफ की सरकार की भूमिका कमजोर पड़ गई है. मुनीर की आक्रामक विदेश नीति के साथ-साथ देश के भीतर सत्ता पर कब्जा जमाने की प्रक्रिया भी चल रही है, जिसे ‘सैन्य नेतृत्व वाला हाइब्रिड तानाशाही’ कहा जा सकता है.

पाकिस्तान में सेना ने न्यायपालिका, अर्थव्यवस्था और विधायी प्रक्रिया पर नियंत्रण कर लिया है. 2023 में पंजाब और सिंध में हजारों एकड़ सरकारी जमीन को ‘राष्ट्रीय विकास’ के नाम पर सैन्य अधिकारियों को दे दिया गया. पहले से ही सेना के पास 1.2 मिलियन एकड़ जमीन है. इसके अलावा, आर्थिक संकट के बावजूद सेना के व्यापारिक संगठन जैसे फौजी फाउंडेशन, शाहीन फाउंडेशन, बह्रिया फाउंडेशन और आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट बिना कर या सरकारी निगरानी के फल-फूल रहे हैं. 2025 में रक्षा बजट में 20 प्रतिशत की वृद्धि की गई, जबकि स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक क्षेत्रों में भारी कटौती हुई.

यह सब कानूनी बदलावों और संवैधानिक हेरफेर के जरिए संभव हुआ. पाकिस्तान आर्मी एक्ट और ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट जैसे कानूनों में संशोधन कर विरोध को दबाया जा रहा है. 9 मई, 2023 के हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद सैकड़ों नागरिकों (जिनमें विपक्षी कार्यकर्ता और पत्रकार शामिल हैं) पर सैन्य अदालतों में मुकदमा चलाया गया.

इसके अलावा, मुनीर ने सैन्य अधिकारियों को नागरिक संस्थानों जैसे वाटर एंड पावर डेवलपमेंट अथॉरिटी और नेशनल डेटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी में भी नियुक्त किया है, जिससे सेना का शासन संरचना पर पूरा नियंत्रण हो गया है.

मुनीर के कार्यकाल की सबसे बड़ी आलोचना उनकी महत्वाकांक्षा और इसके परिणाम हैं. उनके दो साल के कार्यकाल में सैकड़ों सैनिक बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान जैसे उग्रवादी समूहों के हमलों में मारे गए हैं.

जून में उत्तरी वज़ीरिस्तान में एक ही हमले में दर्जनभर सैनिक मारे गए, जिसकी जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने ली. पाकिस्तान में माहौल ऐसा बना दिया गया है कि कोई यह सवाल उठाने की हिम्मत नहीं करता कि सेना इतनी असावधान क्यों थी. इसका जवाब नेतृत्व की गलत प्राथमिकताओं में है. खुफिया विफलताएं और राजनीतिक हेरफेर में संसाधनों का दुरुपयोग राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर कर रहा है.

असीम मुनीर का ध्यान सेना के नेतृत्व से हटकर देश को नियंत्रित करने पर केंद्रित हो गया है. चुनाव प्रबंधन, दलबदल करवाने और अनुकूल जज नियुक्त करने जैसे राजनीतिक हस्तक्षेप में उनकी व्यस्तता ने उग्रवादी समूहों को फिर से संगठित होने और हमला करने का मौका दिया है.

इस सैन्य अतिक्रमण के परिणाम स्पष्ट हैं. पाकिस्तान आज आर्थिक ठहराव, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक दमन में फंसा है. शहबाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज की चुनी हुई सरकार केवल रावलपिंडी में लिए गए फैसलों को वैधता देने का काम करती है. रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के हालिया बयानों से भी साफ है कि नीतिगत फैसले सैन्य प्रतिष्ठान के साथ मिलकर लिए जाते हैं.

पाकिस्तान में सेना हमेशा से एक छाया शक्ति रही है, लेकिन मुनीर के तहत यह छाया अब सुर्खियों में है. अपने पूर्ववर्ती जनरल कमर बाजवा के विपरीत (जो पर्दे के पीछे से शासन करते थे), फील्ड मार्शल मुनीर अपनी केंद्रीय भूमिका को लेकर बेझिझक हैं. वह निवेश सम्मेलनों में भाग लेते हैं, राजदूतों को ब्रीफ करते हैं, और वित्तीय नीति पर टिप्पणी करते हैं, जो एक सैन्य अधिकारी के दायरे से बाहर हैं.

इस खुले नियंत्रण को निगरानी, सेंसरशिप और डराने-धमकाने का माहौल और मजबूत करता है. असहमति जताने वाले मीडिया चैनलों को बंद कर दिया गया है और पिछले दो सालों में कई पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया या निर्वासन में मजबूर किया गया.

असीम मुनीर का पाकिस्तान वह है जहां संविधान को सैन्य नजरिए से देखा जाता है, लोकतंत्र केवल दिखावा है, और सेना पर सवाल उठाने की कीमत आजादी छिन जाना है. सैन्य प्रतिष्ठान के हित राष्ट्रीय रक्षा से बढ़कर राष्ट्रीय प्रभुत्व तक फैल गए हैं, और मुनीर इसका सबसे बड़ा प्रतीक हैं.

सवाल यह है कि पाकिस्तान पर असल में शासन कौन कर रहा है? और एक देश कब तक टिक सकता है जब उसके जनरल सीमाओं की रक्षा छोड़कर राज्य पर शासन करने लगते हैं?

एफएम/डीएससी