नई दिल्ली, 8 फरवरी . दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ गए हैं. यहां भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज की है. 70 विधानसभा सीटों वाले राज्य में भाजपा के हिस्से में 48 सीटें आई हैं. जबकि, 22 सीटों पर आम आदमी पार्टी (आप) को जीत मिली है और कांग्रेस एक बार फिर अपना खाता खोलने में नाकामयाब रही.
दिल्ली चुनाव के दौरान भाजपा तो अपने हिंदुत्व वाली छवि के साथ ही मैदान में थी. लेकिन, आम आदमी पार्टी भाजपा की पिच पर खेलने के लिए उतर आई और उसके ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ वाली छवि बनाने की कोशिश ने उसे झटका दिया. आम आदमी पार्टी के लिए मुस्लिम वोट बैंक जो उसकी ‘बपौती’ मानी जाती थी, वह उससे दूर जाती नजर आई. जिसके परिणामस्वरूप आम आदमी पार्टी को दिल्ली में यह दिन देखना पड़ा.
दिल्ली चुनाव में जहां 10 प्रतिशत से ज्यादा वोट का नुकसान आम आदमी पार्टी को हुआ, वहीं कांग्रेस के वोट बैंक में इजाफा हुआ और यह वोट बैंक आम आदमी पार्टी के हिस्से का ही था. वहीं, पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा के वोट बैंक में भी 10 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ है. इससे साफ पता चलने लगा कि मुसलमान वोटरों का आम आदमी पार्टी से मोहभंग हो गया और यह केवल और केवल अरविंद केजरीवाल के सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ मुड़ने की वजह से हुआ.
आम आदमी पार्टी सॉफ्ट हिंदुत्व पर दांव खेलती नजर आई, पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सनातन सेवा समिति का गठन किया. पुजारी और ग्रंथियों को पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना के तहत सरकार बनने के बाद 18 हजार रुपए हर महीने देने का ऐलान कर दिया. वहीं, बुज़ुर्गों को अयोध्या, रामेश्वरम, वैष्णो देवी, द्वारकाधीश, अमृतसर जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों की मुफ्त यात्रा भी इसी सॉफ्ट हिंदुत्व का हिस्सा था.
2024 में जब अयोध्या के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम था, इस दिन आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में रामलीला का मंचन किया. अरविंद केजरीवाल अपने परिवार के साथ अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन करने भी गए. वहीं, अरविंद केजरीवाल सहित उनकी पार्टी के तमाम नेताओं द्वारा कई मंचों से हनुमान चालीसा का पाठ कहीं ना कहीं उनसे मुसलमानों को दूर करता चला गया.
दिल्ली में ओखला, सीलमपुर, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बल्लीमारान और सीलमपुर जैसे सीट हैं, जहां से मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीतते आए हैं. इसके अलावा सीमापुरी, चांदनी चौक, सदर बाजार, बाबरपुर, गांधी नगर, किराड़ी, जंगपुरा और करावल नगर ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम मतदाता जीत-हार तय करने की ताकत रखता है. इन सभी सीटों में कुछ सीटें जैसे सीलमपुर, मटिया महल, बल्लीमारान और सीलमपुर से ‘आप’ के मुस्लिम उम्मीदवारों को जीतने में कामयाबी तो मिली, लेकिन इन सीटों पर उन्हें कड़ी टक्कर मिली.
मुस्लिम बाहुल्य सीटों में से दो सीटों पर तो असदुद्दीन औवेसी की एआईएमआईएम के उम्मीदवारों ने उसे कड़ी टक्कर दी तो वहीं कई सीटों पर ‘आप’ के उम्मीदवारों को कांग्रेस से टक्कर मिली, यानी मुसलमान वोटरों का ‘आप’ और अरविंद केजरीवाल से मोहभंग हो गया है. साल 2019 में सीएए को लेकर मुसलमानों में गुस्सा था. मुसलमान इस कानून के खिलाफ जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे थे. दिल्ली में इस दौरान दंगे हुए, लेकिन, केजरीवाल और उनकी सरकार ने तब चुप्पी साध ली.
दिल्ली दंगों में मौजूदा ‘आप’ पार्षद ताहिर हुसैन और कई अन्य पर दंगा भड़काने के आरोप लगे, जिसके बाद केजरीवाल ताहिर हुसैन के साथ कई अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग करते नजर आए. कोरोना काल में जब तब्लीगी जमात के खिलाफ बयानबाजी हुई तो केजरीवाल ने परोक्ष रूप से कहा था कि तब्लीगी जमात के लोग कोरोना फैला रहे हैं. गुजरात दंगों की पीड़िता बिलकिस बानो के मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था. बिलकिस बानो मामले में आरोपियों की रिहाई पर लगभग सभी विपक्षी दलों ने भाजपा की आलोचना की और केजरीवाल इस पर बोलने से बचते नजर आए. मनीष सिसोदिया ने साफ कर दिया कि बिलकिस बानो मामले से उनका कोई लेना-देना नहीं है.
दरअसल, केजरीवाल ये समझ गए कि सिर्फ मुसलमानों के सहारे सत्ता हासिल नहीं की जा सकती. ऐसे में मुस्लिम बहुल सीटों को भी जीतने के लिए उन्हें हिंदू वोटों की जरूरत होगी. अगर इन सीटों पर कांग्रेस थोड़ी मजबूत होती है तो उन्हें मुश्किल होगी. ऐसे में उन्होंने सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ रूख किया और इसी का नुकसान हुआ कि उनकी पार्टी से मुसलमान दूर होते चले गए.
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जीकेटी/