होमी जहांगीर भाभा: भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक, थोरियम रिएक्टरों की बनाई दूरदर्शी योजना

New Delhi, 29 अक्टूबर . होमी जहांगीर भाभा न केवल India के परमाणु कार्यक्रम के पिता थे, बल्कि एक दूरदर्शी वैज्ञानिक, कलाकार और संगीत प्रेमी भी थे. विज्ञान क्षेत्र में भाभा के अहम योगदान के लिए उन्हें India का आइंस्टीन कहा जाता है.

होमी भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को Mumbai में एक संपन्न पारसी परिवार में हुआ. उनके पिता जहांगीर होर्मुसजी भाभा एक प्रसिद्ध वकील थे, और उनकी मां मेहरेन भाभा. बचपन से ही होमी में विज्ञान और कला दोनों के प्रति रुचि थी. उन्होंने Mumbai के कैथेड्रल एंड जॉन कोनन स्कूल और एलफिंस्टन कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की. 1927 में मात्र 18 वर्ष की आयु में वे कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए, जहां उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली, लेकिन उनका झुकाव भौतिकी की ओर था.

प्रसिद्ध वैज्ञानिक नील्स बोहर और पॉल डिराक से प्रेरित होकर उन्होंने कॉस्मिक रे रिसर्च पर काम शुरू किया. 1933 में उन्होंने पीएचडी पूरी की और 1939 में डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि प्राप्त की. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान India लौटे भाभा ने Bengaluru में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस जॉइन किया. यहां उन्होंने कॉस्मिक किरणों पर शोध किया, जो बाद में परमाणु भौतिकी का आधार बने. उनकी थीसिस ‘कॉस्मिक रेडिएशन एंड द इलेक्ट्रॉन शावर’ ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई.

1945 में भाभा ने Mumbai में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) की नींव रखी. यह India का पहला प्रमुख शोध संस्थान था, जहां गणित, भौतिकी और जीव विज्ञान पर फोकस था. सर दोराबजी टाटा की मदद से स्थापित इस संस्थान ने India को वैज्ञानिक अनुसंधान का केंद्र बनाया. भाभा का मानना था कि बुनियादी विज्ञान के बिना कोई राष्ट्र उन्नत नहीं हो सकता. टीआईएफआर आज भी विश्व स्तर का संस्थान है, जहां नोबेल विजेता भी शोध करते हैं.

1954 में भाभा को India का परमाणु ऊर्जा आयोग गठित करने का दायित्व सौंपा गया. उन्होंने ट्रॉम्बे (Mumbai ) में एटॉमिक एनर्जी एस्टेब्लिशमेंट (अब भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर—बीएआरसी) स्थापित किया. उनका तीन-चरण परमाणु कार्यक्रम, प्राकृतिक यूरेनियम, प्लूटोनियम और थोरियम, आज भी India की ऊर्जा सुरक्षा का आधार है. India में थोरियम के विशाल भंडार को देखते हुए भाभा ने थोरियम-आधारित रिएक्टरों पर जोर दिया.

1955 में जिनेवा में पहली अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा सम्मेलन में भाभा ने अध्यक्षता की. उन्होंने कहा, “परमाणु ऊर्जा मानवता की सबसे बड़ी आशा है.” उनके नेतृत्व में 1956 में एशिया का पहला परमाणु रिएक्टर ‘अप्सरा’ शुरू हुआ, जो शांतिपूर्ण उपयोग के लिए था. 1960 में ‘साइरस’ रिएक्टर ने India को परमाणु क्लब में शामिल किया.

भाभा केवल वैज्ञानिक नहीं थे. वे उत्कृष्ट चित्रकार थे, जिनकी पेंटिंग्स प्रसिद्ध हैं. शास्त्रीय संगीत के शौकीन, वे पियानो बजाते और ऑर्केस्ट्रा में भाग लेते. आर्किटेक्चर में रुचि रखते हुए उन्होंने टीआईएफआर भवन का डिजाइन खुद तैयार किया. नेहरू के करीबी भाभा को ‘India का आइंस्टीन’ कहा जाता है. 1975 में पोखरण-1 परीक्षण उनकी दूरदर्शिता का प्रमाण था.

24 जनवरी 1966 को स्विट्जरलैंड जाते समय एयर इंडिया की फ्लाइट 101 मॉन्ट ब्लांक पर्वत से टकराई, जिसमें भाभा की मृत्यु हो गई. मात्र 56 वर्ष की आयु में उनका निधन India के लिए अपूरणीय क्षति था. रहस्यमयी दुर्घटना पर सीआईए की संलिप्तता की अफवाहें आज भी हैं, लेकिन कोई प्रमाण नहीं.

एससीएच/डीकेपी