मणिपुर में जातीय संघर्ष के समाधान के लिए गृह मंत्रालय ने बुलाई बैठक

इंफाल, 14 अक्टूबर . एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में गृह मंत्रालय ने मणिपुर में डेढ़ साल से जारी जातीय संघर्ष का समाधान खोजने और शांति बहाल करने के लिए मंगलवार को नई दिल्ली में मेइती, नगा और कुकी-जो समुदायों के विधायकों की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई है.

हालांकि अधिकारियों ने मंगलवार की बैठक की न तो पुष्टि की और न ही इसका खंडन किया, लेकिन मेइती, नगा और कुकी-जो समुदायों के मंत्रियों और विधायकों ने बैठक के आयोजन की अलग-अलग पुष्टि की है.

सूत्रों ने बताया कि मेइती और नगा समुदायों के कुछ मंत्रियों और विधायकों के बैठक में भाग लेने की संभावना है, लेकिन कुकी-जो समुदायों के मंत्रियों और विधायकों ने अभी तक बैठक में भाग लेने का फैसला नहीं किया है.

कुकी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कैबिनेट मंत्री लेतपाओ हाओकिप ने पुष्टि की कि मणिपुर में मौजूदा जातीय स्थिति पर चर्चा के लिए मंगलवार को नई दिल्ली में बैठक आयोजित करने का गृह मंत्रालय की ओर से प्रस्ताव आया है.

हाओकिप ने को फोन पर बताया, “हमने (कुकी-जो विधायकों ने) अभी तक मंगलवार की बैठक में भाग लेने का फैसला नहीं किया है. हमने बैठकों के बारे में आपस में चर्चा भी नहीं की है.”

इंफाल में स्थानीय मीडिया ने बताया कि सभी नगा, कुकी-जो और मेइती विधायकों/मंत्रियों को गृह मंत्रालय द्वारा पत्रों और टेलीफोन कॉल के माध्यम से व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित किया गया है.

इस बीच, पिछले वर्ष मई में मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से सात भाजपा विधायकों सहित 10 विधायक मणिपुर में आदिवासियों के लिए अलग प्रशासनिक इकाई या केंद्र शासित प्रदेश की मांग कर रहे हैं.

इन 10 विधायकों में लेतपाओ हाओकिप और नेमचा किपगेन भी शामिल हैं, जो मणिपुर में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली 12 सदस्यीय मंत्रिमंडल में मंत्री हैं.

राज्य और केंद्र की भाजपा सरकारों ने कई मौकों पर अलग प्रशासन या केंद्र शासित प्रदेश की मांग को खारिज किया है.

यह पहली बार है जब गृह मंत्रालय ने मणिपुर में 17 महीने पहले शुरू हुई हिंसा के बाद मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच जातीय संघर्ष पर चर्चा करने के लिए बैठक बुलाई है.

गैर-आदिवासी मेइती और आदिवासी कुकी-जो के बीच जातीय हिंसा पिछले साल 3 मई को पूर्वोत्तर राज्य में तब भड़की थी, जब मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आयोजन किया गया था.

अब तक इस संघर्ष में 230 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. इसके अलावा 11,133 घरों में आग लगा दी गई है, जिनमें से 4,569 घर पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं. जातीय हिंसा के सिलसिले में विभिन्न पुलिस थानों में कुल 11,892 मामले दर्ज किए गए हैं. राज्य सरकार ने 59,414 आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों को आश्रय प्रदान करने के लिए 302 राहत शिविर स्थापित किए हैं.

आरके/एकेजे