पुणे, 4 जुलाई . केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पुणे में शुक्रवार को कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के सपनों का भारत बनाने की जिम्मेदारी 140 करोड़ भारतीयों पर है और कभी-कभी ‘स्वराज’ की रक्षा के लिए लड़ना भी पड़ता है. उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को इसका उदाहरण बताया.
अमित शाह ने नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) परिसर में मराठा गौरव के प्रतीक और महान देशभक्त श्रीमंत बाजीराव पेशवा की प्रतिमा का अनावरण किया.
अपने संबोधन में केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, “जब स्वराज के लिए लड़ने की जरूरत थी, तो हमने लड़ाई लड़ी. स्वराज को बचाने के लिए लड़ने की जरूरत है, तो हम फिर लड़ेंगे. ऑपरेशन सिंदूर इसका उदाहरण है. लेकिन स्वराज के साथ-साथ महान भारत के विचार में शिवाजी महाराज की अवधारणा भी शामिल है.”
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार, राज्य के उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री चंद्रकांत पाटिल और केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल समेत अन्य बड़े नेता भी मौजूद थे.
गृह मंत्री ने कहा, “हमारा लक्ष्य ऐसा भारत बनाना होना चाहिए, जो पूरी दुनिया में नंबर वन हो. यदि कोई व्यक्तित्व इस लक्ष्य के लिए परिश्रम, समर्पण और बलिदान की प्रेरणा देता है तो वह श्रीमंत बाजीराव पेशवा हैं.”
अमित शाह ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘विकास और विरासत’ का सूत्र दिया है. हमारी हजारों साल पुरानी संस्कृति में अनेक ऐसे महापुरुष हुए हैं, जो आज भी हमें प्रेरित करते हैं. उनका इतिहास आज के युवाओं को बताने की जरूरत है. बाजीराव कभी अपने लिए नहीं लड़े. वह देश और स्वराज्य के लिए लड़े. अंग्रेजों ने इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया. इतनी शक्ति और सामर्थ्य के बावजूद बाजीराव जीवनभर पेशवा बने रहे और स्वराज्य के लिए लड़ते रहे. अपने 40 साल के जीवन में उन्होंने एक अमर इतिहास लिखा, जिसे आने वाले कई सदियों तक कोई दोहरा नहीं सकेगा.”
अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा, “युद्ध की कला के कुछ नियम कभी खत्म नहीं होते हैं. युद्ध में व्यूह रचना और तेजी के महत्व के अलावा समर्पण, देशभक्ति और बलिदान का भाव महत्वपूर्ण हैं. यही सेनाओं को विजय दिलाते हैं, बस हथियार बदलते रहते हैं. 500 साल के भारतीय इतिहास में इन सभी गुणों का सबसे अनुकरणीय उदाहरण श्रीमंत बाजीराव पेशवा में ही मिलता है.”
उन्होंने आगे कहा, “श्रीमंत बाजीराव पेशवा ने 20 साल में 41 युद्ध लड़े और एक भी युद्ध नहीं हारा. ऐसा रिकॉर्ड किसी और सेनापति का नहीं होगा. जिसने मरते दम तक हार को अपने पास नहीं आने दिया, ऐसे वीर योद्धा की प्रतिमा स्थापित करने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान एनडीए ही हो सकता है.”
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डीसीएच/डीएससी