ऐतिहासिक लड़ाईयों को नहीं भूलना चाहिए बल्कि लोगों को बताना चाहिए : दीपचंद ठाकुर

जम्मू, 26 अक्टूबर . महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह के पौते ब्रिगेडियर दीपचंद ठाकुर ने शनिवार को से बात की. उन्होंने कहा, यह एक अनूठी शहादत थी.

उन्होंने कहा, एक सेनाध्यक्ष जैक फोर्सेज का नेतृत्व करते हुए सौ जवानों के साथ युद्ध के मैदान में उतरता है, पांच दिनों तक लड़ाई लड़ता है, दुश्मन की सभी योजनाओं को विफल करता है और अंत में अपने प्राणों की आहुति देता है. सैन्य इतिहास में ऐसी बहादुरी दुर्लभ है. जब पाकिस्तानी हमलावर एक टुकड़ी के साथ पहुंचे, तो उनका लक्ष्य पांच घंटे के भीतर पाकिस्तान के लिए हस्ताक्षर हासिल करना था, उनकी कोशिश पूरी तरह से विफल हो गई. उन्होंने कहा कि हमें इन ऐतिहासिक लड़ाईयों को नहीं भूलना चाहिए बल्कि लोगों को बताना चाहिए. इसके साथ हमें ऐसे साहसिक कार्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए.

बता दें कि ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह को “कश्मीर के रक्षक” के रूप में भी जाना जाता है. उन्होंने 6,000 आक्रमणकारियों को जम्मू और कश्मीर में प्रवेश करने से रोका, यही कारण है कि उन्हें इस उपाधि से नवाजा गया है. अगर उन्होंने आक्रमणकारियों को नहीं रोका होता, तो शायद जम्मू और कश्मीर आज भारत का हिस्सा नहीं होता.

सेवा पदक और विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित ब्रिगेडियर दीपचंद ठाकुर ने 33 वर्षों तक आर्मी मेडिकल कोर में सेवा की. उनकी कहानी बलिदान की एक उल्लेखनीय कहानी है. जम्मू एंड कश्मीर बलों के चीफ ऑफ स्टाफ के रूप में मात्र सौ सैनिकों के एक समूह का नेतृत्व करते हुए, उन्होंने व्यक्तिगत रूप से युद्ध के मैदान में प्रवेश किया, पांच दिनों तक चली भीषण लड़ाई में शामिल होकर दुश्मन की योजनाओं को चकनाचूर कर दिया.

यह एक अनूठी लड़ाई थी जिसमें सौ लोगों की एक छोटी सी टुकड़ी ने लगभग छह हज़ार सैनिकों का सामना किया इस टकराव में पाकिस्तानी हमलावर और नियमित सेना के जवान शामिल थे, जिनका उद्देश्य श्रीनगर पर कब्जा करना और महाराजा हरि सिंह को पांच घंटे के भीतर पाकिस्तान के साथ विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करना था. हालांकि, उनकी योजना पूरी तरह से विफल रही. इस लड़ाई ने जम्मू-कश्मीर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया.

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