नई दिल्ली, 27 अप्रैल . सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई होनी है जिसमें बुजुर्ग और गंभीर रूप से बीमार सजायाफ्ता कैदियों को रिहा करने की मांग की गई है. यह याचिका नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (नालसा) ने दायर की है.
सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर प्रकाशित वाद सूची के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ 28 अप्रैल को इस याचिका पर सुनवाई करेगी.
वकील रश्मि नंदकुमार के माध्यम से दायर याचिका में इन बुजुर्ग और गंभीर रूप से बीमार सजायाफ्ता कैदियों की विकट परिस्थितियों पर प्रकाश डाला गया है और संवैधानिक तथा मानवाधिकार दायित्वों के अनुरूप उनकी अनुकंपा रिहाई के कार्यान्वयन की मांग की गई है.
पीआईएल में जेलों में बंद बुजुर्ग और अशक्त कैदियों की संख्या में खतरनाक वृद्धि को उजागर किया गया है, जिन्हें अक्सर पर्याप्त चिकित्सा देखभाल या रहने की सम्मानजनक स्थिति तक पहुंच नहीं मिलती है.
नालसा ने कहा, “ऐसे व्यक्तियों को लंबे समय तक कैद में रखना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार सिद्धांतों के तहत गारंटीकृत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.”
देश के सर्वोच्च विधिक सेवा प्राधिकरण ने पिछले साल 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के अवसर पर नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति बी.आर. गवई के मार्गदर्शन में वृद्ध कैदियों और असाध्य रूप से बीमार कैदियों के लिए एक विशेष अभियान शुरू किया था.
यह अभियान यह सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया था कि जिन वृद्ध और असाध्य रूप से बीमार दोषी कैदियों ने अपनी सजा का एक बड़ा हिस्सा काट लिया है और गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों से पीड़ित हैं, उनकी अनदेखी न हो.
याचिका में संबंधित ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के अधीन वृद्ध कैदियों और असाध्य रूप से बीमार कैदियों के लिए विशेष अभियान के तहत नालसा द्वारा पहचाने गए व्यक्तियों को रिहा करने के लिए शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप की मांग की गई है.
इसमें प्रीजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2022 का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि 20.8 प्रतिशत दोषी (27,690 कैदी) और 10.4 प्रतिशत विचाराधीन कैदी (44,955 कैदी) 50 वर्ष और उससे अधिक आयु के हैं. विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत स्थापित नालसा का उद्देश्य समाज के वंचित वर्गों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना और न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करना है.
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एकेजे/