नई दिल्ली, 21 जुलाई . गुरु पूर्णिमा के अवसर पर रविवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ‘मोदी आर्काइव’ नामक अकाउंट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर लक्ष्मणराव इनामदार के प्रभाव को याद किया गया.
‘मोदी आर्काइव’ एक्स अकाउंट से किए गए पोस्ट में बताया गया कि नरेंद्र मोदी ने अपने गुरु और आदर्श लक्ष्मणराव इनामदार को याद करते हुए कहा था कि उन्होंने हमेशा दूसरे व्यक्ति के अच्छे गुणों को देखने और उन पर काम करने की सीख दी थी. उन्होंने कहा था कि हर व्यक्ति में कमियां होती हैं. लेकिन, हमें उनकी अच्छाइयों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. एक राष्ट्र, समाज या व्यक्ति के विकास के लिए गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य है.
पोस्ट के मुताबिक, “आठ साल की उम्र में नरेंद्र मोदी की मुलाकात लक्ष्मणराव इनामदार से हुई, जिन्हें प्यार से ‘वकील साहब’ कहा जाता था. दीपावली के दिन परिवार के साथ जश्न मनाने की बजाय नरेंद्र मोदी ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया और ‘वकील साहब’ के मार्गदर्शन में आरएसएस के ‘बाल स्वयंसेवक’ बन गए. यह एक ऐसा फैसला था, जिसने नरेंद्र मोदी के लीडरशिप और राष्ट्र के प्रति विजन को आकार दिया. ‘वकील साहब’ के सिद्धांतों और मूल्यों से नरेंद्र मोदी ने हमेशा प्रेरणा ली.”
पोस्ट में आगे बताया गया, ”1970 में अपने युवा दिनों में नरेंद्र मोदी अहमदाबाद पहुंचे, जहां उन्होंने अपने चाचा की कैंटीन में काम करना शुरू किया, जो राज्य परिवहन कार्यालय में स्थित थी. जल्द ही, उनका संपर्क पास के ही हेडगेवार भवन स्थित आरएसएस मुख्यालय में ‘वकील साहब’ से फिर से हुआ. अपने खाली समय में वे नियमित रूप से वहां की गतिविधियों में शामिल होने लगे. इसी दौरान भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ गया. इसके बाद नरेंद्र मोदी दिल्ली गए और आरएसएस के सत्याग्रह में शामिल हुए, जिसमें आरएसएस कार्यकर्ताओं को सेना में शामिल करने की मांग की जा रही थी. लेकिन, इंदिरा गांधी सरकार ने नरेंद्र मोदी सहित कई कार्यकर्ताओं को तिहाड़ जेल भेज दिया. इस घटना ने नरेंद्र मोदी की राजनीतिक सोच को गहराई दी. 1972 में युद्ध समाप्त होने के बाद ‘वकील साहब’ ने नरेंद्र मोदी को अपना मान लिया. इसके बाद नरेंद्र मोदी ने उनसे शिक्षा लेना शुरू किया. वह तब तक औपचारिक रूप से आरएसएस में ‘प्रचारक’ के रूप में शामिल हो गए थे.”
पोस्ट में बताया गया कि हेडगेवार भवन में नरेंद्र मोदी ने गुरु-शिष्य परंपरा को पूरी निष्ठा से अपनाया. अनुशासन उनकी पहली सीख थी. ‘वकील साहब’ अक्सर कहते थे, “हर किसी के पास 24 घंटे होते हैं, लेकिन उनका सदुपयोग कैसे किया जाता है, यह मायने रखता है.”
नरेंद्र मोदी सुबह पांच बजे उठते, सभी के लिए चाय बनाते, बर्तन धोते, नाश्ता तैयार करते और परोसते. उनका काम यहीं खत्म नहीं होता था. वे अकेले ही आठ-नौ कमरों वाली इमारत की सफाई करते, अपने और ‘वकील साहब’ के कपड़े धोते, फिर किसी स्वयंसेवक के घर खाना खाने जाते. खाना खाने के बाद वे वापस हेडगेवार भवन आकर अपना काम जारी रखते थे.
16 अक्टूबर 1984 को ‘वकील साहब’ का निधन हो गया, जिससे नरेंद्र मोदी के जीवन में एक बड़ा शून्य पैदा हो गया. हालांकि, उन्होंने ‘वकील साहब’ से प्राप्त शिक्षाओं को हमेशा संजोकर रखा. इन मूल्यों के साथ ही उन्होंने 1987 में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर अपने जीवन का एक नया अध्याय शुरू किया.
भारतीय दर्शन के अनुसार, ”प्रत्येक व्यक्ति चार ऋणों के साथ पैदा होता है, उनमें से एक ‘ऋषि ऋण’ है. यह ऋण अपने गुरु और पूर्वजों से प्राप्त ज्ञान और मूल्यों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का कर्तव्य है. ‘वकील साहब’ के ज्ञान और विरासत के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, नरेंद्र मोदी ने 6 जून 1992 को ‘ऋषि पंचमी’ के अवसर पर ‘संस्कारधाम’ और ‘लक्ष्मण ज्ञानपीठ’ नामक शिक्षण और सांस्कृतिक संस्थानों की स्थापना की.”
”नरेंद्र मोदी 18 अगस्त 2001 को दिल्ली के तत्कालीन 7 रेस कोर्स रोड पर आए थे. उस समय वह भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव थे. वह लक्ष्मणराव इनामदार की जीवनी ‘सेतुबंध’ का विमोचन करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की उपस्थिति में वहां गए थे. इस पुस्तक में नरेंद्र मोदी ने इनामदार की तुलना भगवान राम द्वारा निर्मित सेतु से की थी.”
पोस्ट में आगे लिखा है कि 23 अगस्त, 2001 को ‘वकील साहब’ की पुण्यतिथि पर, नरेंद्र मोदी ने ‘तप वंदना’ नामक एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया. इस कार्यक्रम का उद्देश्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 75 वर्ष की आयु पार कर चुके स्वयंसेवकों को सम्मानित करना था. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी ‘वकील साहब’ की शिक्षाओं का पालन करते रहे हैं. अपने रेडिया कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 100वें एपिसोड में प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि ‘मन की बात’ हमेशा से दूसरों के अच्छे गुणों की पूजा करने के बारे में रही है, जो उनके गुरु ‘वकील साहब’ ने उन्हें सिखाया था.
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एएस/एबीएम