नई दिल्ली, 14 फरवरी . भारतीय बैंकों को ऊँची ब्याज दरों के बावजूद जमा में कमी के कारण विकास और लाभ अनुपात में मंदी का सामना करना पड़ रहा है.
पिछले साल अक्टूबर-से-दिसंबर तिमाही में अधिकांश प्रमुख बैंकों ने आय में वृद्धि दर्ज की, लेकिन सख्त तरलता और बढ़ती फंडिंग लागत के कारण शुद्ध ब्याज अनुपात (एनआईएम) में गिरावट आई.
एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, बड़े बैंकों में वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में केवल पंजाब नेशनल बैंक का एनआईएम बढ़ा.
संपत्ति के हिसाब से देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने वेतन बिल में वृद्धि से संबंधित 71 अरब रुपये के खर्च को शामिल करने के बाद कम शुद्ध आय दर्ज की.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने हाल ही में बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को ऋणदाताओं की ग्राहक संपत्ति रखने वाले एआईएफ में निवेश करने से रोक दिया है. इस कदम का उद्देश्य ऋण वसूली को रोकना है. ऋणदाताओं को एक महीने के भीतर एआईएफ होल्डिंग्स का विनिवेश करना होगा या प्रावधानों को अलग रखना होगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि उद्योग समूहों का अनुमान है कि यह निर्देश अरबों के बैंक निवेश को प्रभावित करेगा और संभावित रूप से विकास में बाधा डालेगा.
भारतीय बैंक जमा वृद्धि ऋण वृद्धि के मुकाबले कमजोर बनी हुई है. दिसंबर 2023 में जारी आरबीआई डेटा के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2022-23 में ऋण उठाव 15 प्रतिशत बढ़ा जबकि जमा वृद्धि 11 फीसदी ही रही.
नोमुरा की 8 फरवरी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बढ़ते अंतर ने ऋण और जमा के अनुपात को 10 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंचा दिया है. इसके लिए आरबीआई द्वारा नीति को कड़ा करने के उपायों को आंशिक रूप से जिम्मेदार ठहराया गया है.
आरबीआई कर्मचारियों के 18 जनवरी के शोध पत्र के अनुसार, भारतीय खुदरा ऋण में वृद्धि जारी रहने की संभावना है. असुरक्षित ऋणों में तेजी से वृद्धि के बारे में केंद्रीय बैंक की चिंताओं के बावजूद बैंकों ने खुदरा ऋण में वृद्धि देखी है. ये 2023 में बैंक पोर्टफोलियो के 35 प्रतिशत तक पहुंच गए, जो 2007 में 25 प्रतिशत थे. प्रतिक्रिया स्वरूप, केंद्रीय बैंक ने नवंबर 2023 में असुरक्षित व्यक्तिगत ऋण पर जोखिम भार बढ़ा दिया.
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एकेजे/