New Delhi, 20 सितंबर . व्यस्त जीवन की भागदौड़ में हम अक्सर उन छोटी-छोटी चीजों को भूल जाते हैं, जो हमें खुशियां देती हैं. लेकिन 21 सितंबर को मनाया जाने वाला ‘विश्व आभार दिवस’ हमें आभार व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है.
यह दिन न केवल व्यक्तिगत स्तर पर कृतज्ञता की भावना को मजबूत करता है, बल्कि एकता और सकारात्मकता को बढ़ावा देता है.
आभार की यह भावना तनाव कम करने, मानसिक स्वास्थ्य सुधारने और रिश्तों को मजबूत बनाने में सहायक सिद्ध होती है. ‘विश्व आभार दिवस’ की शुरुआत 1965 में आध्यात्मिक नेता श्री चिन्मय द्वारा संयुक्त राष्ट्र में एक थैंक्सगिविंग डिनर के दौरान हुई थी और उन्होंने धन्यवाद दिवस को पूरी दुनिया में मनाने का प्रस्ताव दिया था.
इस सभा में आध्यात्मिक नेता श्री चिन्मय ने आभार व्यक्त करने के लिए एक वैश्विक अवकाश की अवधारणा प्रस्तुत की. डिनर में उपस्थित प्रतिभागियों ने प्रतिज्ञा ली कि वे हर वर्ष अपने-अपने देशों में इस दिन को मनाएंगे. अगले वर्ष 21 सितंबर 1966 को पहली बार ‘विश्व आभार दिवस’ मनाया गया. 1977 में संयुक्त राष्ट्र ने इसे आधिकारिक मान्यता दी और तब से यह हर वर्ष मनाया जा रहा है.
इस दिन हम एक दूसरे को आभार व्यक्त करने के साथ खुशी जाहिर करते हैं. जब कोई हमारे लिए सहयोग का कदम आगे बढ़ाता है तो हमारे लिए वो खास दिन होता है.
इस दिवस का महत्व असीमित है. आधुनिक विज्ञान भी आभार की शक्ति को मान्यता देता है. अध्ययनों से पता चलता है कि नियमित रूप से आभार व्यक्त करने से कोर्टिसोल हार्मोन (तनाव का कारण) का स्तर कम होता है, नींद बेहतर आती है और हृदय स्वास्थ्य में सुधार होता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आभार के अभ्यास से अवसाद की संभावना 35 प्रतिशत तक घट सकती है. कार्यस्थल पर आभार संस्कृति अपनाने से कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ती है.
वैश्विक स्तर पर यह दिन शांति और एकता का संदेश देता है, खासकर जब दुनिया महामारी, युद्ध और पर्यावरणीय संकटों से जूझ रही हो. उत्सव के तरीके विविध हैं.
सामूहिक रूप से स्कूलों और कार्यालयों में आभार सर्कल आयोजित होते हैं, जहां लोग एक-दूसरे को धन्यवाद देते हैं.
‘विश्व आभार दिवस’ हमें याद दिलाता है कि आभार एक भावना नहीं, बल्कि जीवनशैली है. यह नकारात्मकता को सकारात्मकता से बदल देता है. जैसे फूल बिना डर के खिलते हैं, वैसे ही आभार हमें आशा का संदेश देता है.
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एकेएस