अर्जित ज्ञान का विस्तार समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे: राज्यपाल आनंदीबेन पटेल

बरेली, 30 जून . उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के 11वें दीक्षांत समारोह में कहा कि विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले सभी छात्र-छात्राएं अपने-अपने स्तर पर अच्छा कार्य कर रहे हैं. मेडल प्राप्त करने वाले विद्यार्थी सम्मान के योग्य हैं, परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि बाकी छात्रों का प्रयास कमतर है.

उन्होंने कहा कि कई बार प्रथम और द्वितीय स्थान के बीच एक-दो अंकों का ही अंतर रहता है. इसलिए जिन्हें पुरस्कार नहीं मिला, वे भी निराश न होकर अपने प्रयासों को उत्साहपूर्वक जारी रखें. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘शिक्षा से सेवा’ के दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन, शोध, नवाचार और गुणवत्ता सुधार को लेकर गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं.

उन्होंने बताया कि अयोध्या स्थित आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय ने नैक मूल्यांकन में ए प्लस प्लस ग्रेड प्राप्त किया है, जबकि मेरठ के सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय को ए ग्रेड मिला है. विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे अपने ज्ञान का लाभ महिलाओं, किसानों, बच्चों और जरूरतमंदों तक पहुंचाएं. उन्होंने गुजरात के ‘लैब टू लैंड’ मॉडल का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे वैज्ञानिकों को गांव से जोड़कर व्यापक परिवर्तन लाया जा सकता है. उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे केवल नौकरी पाने की सोच तक सीमित न रहें, बल्कि आत्मनिर्भर बनने और समाज में योगदान देने की दिशा में भी सोचें.

उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की उपस्थिति को एक प्रेरणादायक क्षण बताया और कहा कि वह लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा की प्रतीक हैं. राज्यपाल ने विश्वविद्यालय प्रशासन से भी अपील की कि वे भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं से जुड़ने हेतु प्रोजेक्ट तैयार करें और इनसे प्राप्त बजट का उपयोग विद्यार्थियों के शोध, प्रशिक्षण और ग्रामीण उत्थान में करें. उन्होंने कहा कि जो ज्ञान आपने विश्वविद्यालय से अर्जित किया है, उसका विस्तार समाज के अंतिम व्यक्ति तक हो, यही आपकी सच्ची डिग्री और जिम्मेदारी होगी.

वहीं, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि देश के प्रत्येक जिले में वैज्ञानिकों की 2,000 टीमें भेजी जाएंगी. वह स्थानीय किसानों को आधुनिक कृषि, उन्नत नस्लों, तकनीकी खेती और बागवानी के विषय में जानकारी देंगी. वैज्ञानिक अब सिर्फ लैब में सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि खेत और खलिहान तक जाकर किसानों से जुड़ेंगे. रिसर्च पेपर केवल प्रकाशन के लिए नहीं, बल्कि किसानों और पशुपालकों के जीवन में बदलाव लाने के लिए होने चाहिए. आईवीआरआई केवल एक संस्था नहीं, बल्कि यह भारत की ग्रामीण जीवनशैली, पशुपालन संस्कृति और वैज्ञानिक सोच का आधार है.

उन्होंने कहा कि संस्थान ने टीका अनुसंधान, उन्नत नस्ल विकास, दुग्ध उत्पादन और पशुपालन में ऐसे कीर्तिमान स्थापित किए हैं, जिनसे न केवल भारत, बल्कि विश्व को भी नई दिशा मिली है. भारत कृषि प्रधान देश है, लेकिन पशुपालन के बिना कृषि की कल्पना अधूरी है. देश में 300 से अधिक अभिनव कृषि प्रयोग किसानों ने खुद किए हैं, जिनमें वैज्ञानिकों के सहयोग से और अधिक परिष्कृत करने की आवश्यकता है. देश के प्रत्येक जिले में वैज्ञानिकों की 2,000 टीमें भेजी जाएंगी. वह स्थानीय किसानों को आधुनिक कृषि, उन्नत नस्लों, तकनीकी खेती और बागवानी के विषय में जानकारी देंगी.

विकेटी/एबीएम