अर्थव्यवस्था पर सरकार का श्‍वेतपत्र : अभी क्यों?

नई दिल्ली, 8 फरवरी . केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को लोकसभा में भारतीय अर्थव्यवस्था पर श्‍वेतपत्र पेश किया.

वित्तमंत्री ने शुरुआत में ही यूपीए काल 2004-14 की अर्थव्यवस्था पर ‘श्‍वेतपत्र अब क्यों’ के सवाल पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा, ‘2014 में जब हमने सरकार बनाई थी, तब अर्थव्यवस्था नाजुक स्थिति में थी, सार्वजनिक वित्त कमजोर था. बुरी हालत में आर्थिक कुप्रबंधन और वित्तीय अनुशासनहीनता थी और व्यापक भ्रष्टाचार था.

उन्‍होंने कहा, “यह संकटपूर्ण स्थिति थी. अर्थव्यवस्था को चरण दर चरण सुधारने और शासन प्रणालियों को व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी बहुत बड़ी थी. हमारी सरकार ने तब खराब स्थिति पर श्‍वेतपत्र लाने से परहेज किया. इससे नकारात्मक परिणाम ने निवेशकों सहित सभी के विश्‍वास को हिला दिया.”

“समय की मांग थी कि लोगों में आशा जगाई जाए, घरेलू और वैश्विक निवेश आकर्षित किया जाए और बहुत जरूरी सुधारों के लिए समर्थन जुटाया जाए. सरकार ‘राष्ट्र पहले’ में विश्‍वास करती है, न कि राजनीतिक लाभ उठाने में.”

“अब जब हमने अर्थव्यवस्था को स्थिर कर दिया है और इसे पुनर्प्राप्ति और विकास पथ पर स्थापित कर दिया है, तो यूपीए सरकार द्वारा विरासत के रूप में छोड़ी गई प्रतीत होने वाली दुर्गम चुनौतियों को सार्वजनिक डोमेन में रखना आवश्यक है.”

“2014 से पहले के युग की हर चुनौती को हमारे आर्थिक प्रबंधन और हमारे शासन के माध्यम से दूर किया गया था. इनसे देश निरंतर उच्च विकास के दृढ़ पथ पर अग्रसर हुआ है. यह हमारी सही नीतियों, सच्चे इरादों और उचित निर्णयों से संभव हुआ है.”

वित्तमंत्री ने कहा कि यह पेपर सांसदों और भारत के लोगों को शासन की प्रकृति और सीमा तथा 2014 में सत्ता संभालने के बाद इस सरकार पर आए आर्थिक और राजकोषीय संकटों से अवगत कराना चाहता है.

उन्होंने कहा, “दूसरा, यह उन्हें उन नीतियों और उपायों के बारे में सूचित करता है, जो हमारी सरकार ने अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य को बहाल करने और इसे वर्तमान और अमृत काल में लोगों की विकास आकांक्षाओं को पूरा करने में सशक्त और सक्षम बनाने के लिए उठाए हैं.”

अखबार में कहा गया है कि 2014 में, नरेंद्र मोदी सरकार को एक बेहद क्षतिग्रस्त अर्थव्यवस्था विरासत में मिली थी, जिसकी नींव को आत्मनिर्भर, दीर्घकालिक आर्थिक विकास को सक्षम करने के लिए फिर से बनाना पड़ा.

इसमें विस्तार से बताया गया है कि कैसे (अटल बिहारी) वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2004 में उच्च विकास क्षमता वाली एक स्वस्थ और लचीली अर्थव्यवस्था सौंपी थी, यूपीए I और II में मुद्रास्फीति ने अर्थव्यवस्था को दोहरे अंक की निराशाजनक स्थिति में ला दिया. इसमें कहा गया है, तेजी के दौर में अत्यधिक ऋण देने और उच्च नीतिगत अनिश्चितता के कारण बीमार बैंकिंग क्षेत्र ने भारत के कारोबारी माहौल को खराब कर दिया और इसकी छवि और लोगों के भविष्य के बारे में उनके विश्‍वास को नुकसान पहुंचाया.

इसमें कहा गया है कि ऐसे कई घोटाले हुए हैं, जिनसे सरकारी खजाने को भारी राजस्व घाटा हुआ है और राजकोषीय व राजस्व घाटा नियंत्रण से बाहर हो गया है.

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