समय में पीछे जाकर डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस के जीवन में झांके

बीजिंग, 15 अगस्त . “प्रिय पिताजी, मैंने चीन जाने वाली चिकित्सा सहायता टीम के बारे में अपने सहकर्मियों से सलाह ली है…उन्होंने मुझे इससे जुड़े संभावित जोखिमों के बारे में बताया है. मैंने अपना आवेदन जमा कर दिया है और मुझे उम्मीद है कि मैं अपनी ईमानदारी और योग्यता का परिचय देकर चयनित हो जाऊंगा.”

1938 के जुलाई में, भारत के Mumbai में रहने वाले भारतीय चिकित्सक, डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस ने अपने पिता को यह पत्र लिखा था. लगभग एक महीने बाद, कोटनीस चीन जाने वाले एक क्रूज जहाज पर सवार हो गए.

कोटनीस के भारत छोड़ने के कुछ ही समय बाद, उनके पिता का निधन हो गया. 1939 की जनवरी में, कोटनीस, जो पहले ही चीन के छोंगछिंग में काम करना शुरू कर चुके थे, ने अपने भाई को जापानी हवाई हमलों के दौरान चीनी लोगों की पीड़ा का वर्णन करते हुए लिखा, “मैंने लोगों को मलबे से पीड़ितों के शवों को घसीटते देखा—पुरुष, महिलाएं और मासूम बच्चे. उन्होंने ऐसा क्या गलत किया था कि उन्हें ऐसी त्रासदी झेलनी पड़ी? कृपया मेरी माँ को सांत्वना देने की पूरी कोशिश करें. मुझे अफ़सोस है कि मैं कोई मदद नहीं कर पाऊंगा.”

1939 की फरवरी में, कोटनीस उत्तर-पश्चिम चीन में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के क्रांतिकारी गढ़ यानान पहुंचे. यानान में जीवन कठिन था, लेकिन वहाँ के समानता और स्वतंत्रता के माहौल ने उन्हें उत्साहित किया. यानान में जीवन खतरनाक भी था. ऐसी कठोर परिस्थितियों में भी, कोटनीस ने घायलों को बचाने के लिए तीन दिन और तीन रात लगातार काम किया. 1942 की जनवरी में, उन्होंने अपनी सबसे बड़ी बहन को लिखा, “जहाँ तक मेरे भारत लौटने की बात है, तुम्हें चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है. इस समय, हर भारतीय की ज़िम्मेदारी, हर चीनी और हर शांतिप्रिय व्यक्ति की ज़िम्मेदारी की तरह, जापानी आक्रमणकारियों का विरोध करना और फासीवाद का विरोध करना है.” उसी वर्ष, वे स्वेच्छा से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए.

1942 के 9 दिसंबर को, डॉ. कोटनीस का चीन में 32 वर्ष की आयु में बीमारी के कारण निधन हो गया.

द्वारकानाथ कोटनीस ने अपना जीवन चीन को समर्पित कर दिया और चीनी जनता का शाश्वत सम्मान अर्जित किया. दशकों से, चीनी जनता और सरकार डॉ. कोटनीस को श्रद्धांजलि देने और उनके परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए विभिन्न माध्यमों का उपयोग करती रही है. भारत स्थित अपने घर में, डॉ. कोटनीस की बहनें उनकी और उनकी चीनी पत्नी की तस्वीरें प्रदर्शित करती हैं, और चीनी नेताओं द्वारा दिए गए उपहार उनके बैठक कक्ष की अलमारियों में प्रदर्शित किए जाते हैं.

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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