परिवार से ज्यादा फॉलोअर्स से ज्यादा कनेक्टेड है जेन ज़ेड

नई दिल्ली, 30 अगस्त . आज के युवाओं को अक्सर ‘जेन ज़ेड’ के नाम से जाना जाता है. यह पीढ़ी तकनीक के साथ पली-बढ़ी है और सोशल मीडिया उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गया है. सोशल मीडिया, हालांकि संचार और जुड़ाव का एक शक्तिशाली माध्यम है. सोशल मीडिया ने दुनिया को करीब लाने का काम तो किया है, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी सामने आ रहा है.

जेन ज़ेड की दिलचस्पी यूट्यूबर्स, इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर्स और फिल्मों व वेब सीरीज के कैरेक्टर्स में बढ़ रही है. ये डिजिटल प्लेटफॉर्म्स अब केवल मनोरंजन का साधन नहीं रह गए हैं, बल्कि वे जीवन जीने के नए तरीके और दृष्टिकोण भी प्रस्तुत कर रहे हैं. ये प्लेटफॉर्म्स युवा पीढ़ी के सोचने और महसूस करने के तरीके को बदल रहे हैं.

फिल्मों और वेब सीरीज के कैरेक्टर्स जेन ज़ेड के लिए इमोशनल कनेक्शन का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गए हैं. इन कैरेक्टर्स की कहानियों और उनकी भावनात्मक यात्रा का जेन ज़ेड पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि वे खुद को उनसे जोड़ लेते हैं. परिणामस्वरूप, वे इन वर्चुअल कैरेक्टर्स के साथ एक तरह का भावनात्मक रिश्ता बना लेते हैं, जो वास्तविक जीवन के रिश्तों से कहीं ज्यादा प्रबल महसूस होता है.

हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ एसेक्स की एक स्टडी ने जेन ज़ेड के बारे में यह चौंकाने वाला खुलासा किया है. स्टडी के अनुसार, जेन ज़ेड के युवा अपने परिवार से ज्यादा सोशल मीडिया पर अपने फॉलोअर्स के साथ जुड़ा हुआ महसूस करते हैं.

स्टडी के अनुसार, सोशल मीडिया और वर्चुअल वर्ल्ड की बढ़ती लोकप्रियता का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जेन ज़ेड अब पारंपरिक रिश्तों, खासकर शादी, से भी दूरी बनाने लगे हैं. वे अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीना चाहते हैं. उनका फोकस अब अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करने पर है, न कि किसी रिश्ते या परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने पर.

जेन ज़ेड का यह नजरिया समाज के लिए एक नई चुनौती पेश कर रहा है. यह दर्शाती है कि दुनिया तेजी से बदल रही है. यह बदलाव समाज के पारंपरिक ढांचे को चुनौती दे रहा है. जहां एक तरफ युवा अपनी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वे पारंपरिक मूल्यों और रिश्तों से दूर हो रहे हैं.

युवाओं में आ रहे इन बदलावों पर ‘होप साइकोलॉजी एंड रिलेशनशिप काउंसलिंग सेंटर’ के मनोवैज्ञानिक विवेक वत्स ने से बात करते हुए बताया, “इन चिंताओं के बावजूद, आपको ये भी समझना होगा कि किशोर अपना अस्तित्व स्थापित करने के लिए भी इंटरनेट का उपयोग करते हैं, जो किशोरावस्था के विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है. सोशल मीडिया पर मिलने वाली सराहना , लाइक्स और फैन फॉलोइंग, उनकी सेल्फ एक्जिस्टेंस की भावनात्मक जरूरत को पूरा करती है. यदि किशोरों की यह जरूरत उनके परिवार के द्वारा पूरी हो जाए तो काफी हद तक इस समस्या पर नियंत्रण किया जा सकता है.”

विवेक वत्स के अनुसार, किशोरों का अत्यधिक स्क्रीन समय निम्नलिखित समस्याओं में योगदान दे सकता है- कुछ छूट जाने का डर, नोमोफोबिया, या अपने फोन के बिना होने का डर, डिजिटल लत, अवसाद, चिंता, नींद में व्यवधान.

विवेक वत्स ने बताया कि किशोरों को स्क्रीन टाइम और परिवार के साथ समय बिताने के बीच बेहतर संतुलन बनाने में मदद करने के लिए अभिभावक निम्नलिखित उपायों का इस्तेमाल कर सकते है जैसे-

सीमाएं तय करें. खाने, बाहर जाने और सोने से 30 से 60 मिनट पहले सभी स्क्रीन बंद करने जैसे नियम बनाएं.

अच्छे व्यवहार का उदाहरण पेश करें. परिवार और दोस्तों से व्यक्तिगत रूप से बातचीत करते समय अपना फोन दूर रखकर उदाहरण पेश करें.

अपनी आदतों के प्रति सचेत रहें. इस बात पर ध्यान दें कि आप अपने फ़ोन पर कितना समय बिताते हैं और यह परिवार के साथ आपकी बातचीत को कैसे प्रभावित करता है.

कुल मिलाकर जेन ज़ेड का यह बदलाव इस बात का संकेत है कि समाज को भी अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है, ताकि वह नई पीढ़ी की अपेक्षाओं और जरूरतों को समझ सके और उनके साथ तालमेल बिठा सके.

एएस