गांधी स्मृति : इस भवन में हर तरफ राष्ट्रपिता की यादें, हर कोना कुछ कहता है…

नई दिल्ली, 1 अक्टूबर . मोहनदास करमचंद गांधी भारत ही नहीं दुनिया के लिए दिव्य पुरुष के समान हैं. वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से भी लोकप्रिय हैं और उन्हें प्यार से बापू भी कहा जाता है. महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा के सिद्धांत को पूरी दुनिया ने मान्यता दी और आज के उथल-पुथल भरे विश्व में महात्मा गांधी के सिद्धांत को अपनाने की सबसे ज्यादा जरूरत है.

महात्मा गांधी की नई दिल्ली के पुराने बिड़ला भवन से भी अनूठी यादें जुड़ी हैं. इस भवन में स्थित गांधी स्मृति वह पवित्र स्थल है, जहां महात्मा गांधी ने 30 जनवरी 1948 को अपने नश्वर शरीर को त्यागा था. इस घर में महात्मा गांधी 9 सितंबर 1947 से 30 जनवरी 1948 तक रहे थे. महात्मा गांधी के अंतिम 144 दिनों की स्मृतियां संजोकर रखी गई हैं, जिसे आप भी देख सकते हैं.

गांधी स्मृति वेबसाइट के मुताबिक, पुराने बिड़ला भवन को भारत सरकार ने 1971 में अधिग्रहित कर लिया. फिर, इस भवन को राष्ट्रपिता के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया. इसे 15 अगस्त 1973 को आम जनता के लिए खोल दिया गया. भवन में उस कमरे को भी संरक्षित करके रखा गया है, जहां पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी रहते थे.

इसके अलावा प्रार्थना मैदान भी है, जिसमें आम सभा होती थी. इसी स्थान पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को हत्यारे नाथूराम गोडसे ने गोली मार दी थी. भवन को उसी तरह से संरक्षित करके रखा गया है, जैसे महात्मा गांधी के समय था. प्रसिद्ध उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला ने इस भवन को 1928 में बनवाया था. जिसमें कई स्वतंत्रता सेनानी ठहरने आते थे.

ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि इस जगह पर महात्मा गांधी पहली बार 15 मार्च 1939 को आए थे. उनका तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड लिनलिथगो से मुलाकात करने का कार्यक्रम था. इस स्मारक की संरचना में महात्मा गांधी और उनकी यादों को सहेजा गया है. इसके अलावा उनके जीवन के खास मूल्यों के साथ ही महात्मा गांधी से संबंधित सेवा गतिविधियों को भी स्थान दिया गया है.

गांधी स्मृति वेबसाइट में जिक्र किया गया है कि, संग्रहालय में जो चीजें प्रदर्शित की गई हैं, उनमें गांधी जी ने जितने वर्ष यहां व्यतीत किए हैं, उनसे संबंधित तस्वीरें, वस्तु शिल्प, चित्र, भित्तिचित्र, शिलालेख और स्मृति चिन्ह शामिल हैं. गांधी जी की कुछ व्यक्तिगत जरूरत की चीजों को भी बहुत संभाल कर यहां पर रखा गया है. इसका प्रवेश द्वार भी बहुत ऐतिहासिक महत्व का है.

इसी द्वार के शीर्ष से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दुनिया को महात्मा गांधी की मृत्यु की सूचना दी थी. उन्होंने कहा था, “हमारे जीवन से प्रकाश चला गया है और हर जगह अंधेरा छा गया है.” जिस जगह पर राष्ट्रपिता की हत्या हुई थी, वहां पर एक शहीद स्तंभ बनाया गया है. यह महात्मा गांधी की शहादत की याद दिलाता है. स्तंभ के चारों तरफ श्रद्धालुओं के लिए परिक्रमा पथ है.

प्रार्थना स्थल के केंद्र में एक मंडप है, जिसकी दीवारों पर भारत की सांस्कृतिक यात्रा की अनवरतता, दुनिया के साथ उसके संबंध एवं एक ‘सार्वभौमिक व्यक्ति’ के रूप में महात्मा गांधी के उद्भव और उनके मूल्यों को जगह दी गई है. महात्मा गांधी ने भी खुद कई बार कहा था, “मेरी भौतिक आवश्यकताओं के लिए मेरा गांव मेरी दुनिया है. लेकिन, मेरी आध्यात्मिक जरूरतों के लिए संपूर्ण दुनिया मेरा गांव है.”

गांधी स्मृति में गांधी जी के कमरे को ठीक उसी प्रकार रखा गया है, जैसा यह उनकी हत्या के दिन था. उनकी सारी चीजें, उनका चश्मा, टहलने की छड़ी, एक चाकू, कांटा और चम्मच, खुरदुरा पत्थर जिसका इस्तेमाल वह साबुन की जगह करते थे, प्रदर्शन के लिए रखी गई हैं. उनका बिस्तर फर्श पर बिछी एक चटाई पर था. भगवद् गीता की एक पुरानी और उनके उपयोग में आ चुकी एक प्रति भी रखी हुई है.

2 अक्टूबर 1869 को पैदा हुए महात्मा गांधी ने अपने जीवनकाल में एक महान यात्रा तय की. उनसे जुड़े इस ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण भवन में कई ऐसी चीजें हैं, जिसके जरिए आप महात्मा गांधी के महामानव और राष्ट्रपिता बनने की यात्रा के गवाह बन सकते हैं. आप उनके संदेश के जरिए समझ सकते हैं कि मानवता को महात्मा गांधी के विचार और व्यक्तित्व की हर सदी में क्यों जरूरत पड़ती है.

एबीएम/