नई दिल्ली, 7 सितंबर . बंगाल में साहित्य की छाप ऐसी है कि वो सिर्फ अमीर ही नहीं, बल्कि सभी वर्ग के लोगों के दिलों में भी है. वैसे तो कोलकाता की जमीन पर आपको हर तरफ किताबें देखने को मिल जाएंगी. उसे पढ़ने वालों की संख्या भी ज्यादा है. हो भी क्यों नहीं, क्योंकि यहीं से तो साहित्य की दुनिया के ऐसे सितारे निकले हैं जो आज भी लोगों के दिलों में विद्यमान हैं.
ऐसे ही एक सितारे का जन्म 7 सितंबर 1934 को हुआ था और इनका नाम सुनील गंगोपाध्याय था. सुनील गंगोपाध्याय साहित्य की दुनिया में सिर्फ कवि ही नहीं बल्कि इतिहासकार और उपन्यासकार भी रहे हैं.
उन्हें 1985 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1983 में बंकिम पुरस्कार, 1989 में आनंद पुरस्कार और 2011 में हिंदू साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वह लंबे समय तक साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष रहे और फिर उन्हें साल 2008 में साहित्य अकादमी का अध्यक्ष बनाया गया था.
एक समय में कोलकाता में छोटी-छोटी मैगजीन का बहुत विशिष्ट व्यापार था, ऐसे बहुत कम शहर होंगे जहां इस तरह से मैगजीन का व्यापार होता था जैसा कोलकाता में था. हर बाबू मोशाय को एक नई मैगजीन का इंतजार रहता था. ऐसे समय में साल 1953 में सुनील गंगोपाध्याय ने ‘कृतीबास’ नाम की बंगाली कविता की पत्रिका की शुरुआत की.
बांग्ला भाषा के प्रतिष्ठित कवि और उपन्यासकार सुनील गंगोपाध्याय ने सिर्फ कविता ही नहीं बल्कि ‘नील लोहित’ नाम से रोमांटिक उपन्यास भी लिखा और इससे वो लोगों के बीच काफी प्रसिद्धि भी हासिल कर सके.
कभी सुनील ने बंगाल में नवजागरण को लेकर लिखा जो कि समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर के इर्द गिर्द लिखा गया. तो कभी उन्होंने एक बंगाली काल्पनिक चरित्र का निर्माण किया था ‘काकाबाबू’ और ये काफी प्रचलित भी हुआ.
‘काकाबाबू’ उपन्यास इतना फेमस हुआ कि उसके 30 से भी ज्यादा संस्करण निकाले गए. इन्होंने सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि युवाओं को भी मौका देने के लिए काम किया.
ये किताबों की दुनिया से ही परिचित नहीं रहे बल्कि मशहूर निर्देशक सत्यजीत रे ने भी इनके दो उपन्यास ‘अरण्येर दिनरात्रि’ और ‘प्रतिध्वनि’ पर फिल्म बनाई. इसके अलावा उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाओं में ‘पार्थो आलो’ और ‘पूर्वो-पश्चिम’ शामिल हैं.
‘नीरा’ नाम का काल्पनिक चरित्र भी बंगालियों में खूब प्रचलित रहा. सुनील गंगोपाध्याय के उपन्यास में नीरा नाम का काल्पनिक चरित्र इतना प्रसिद्ध हुआ कि 2019 में मंडेविला गार्डन का नाम बदलकर नीरा गार्डन रख दिया गया.
सुनील गंगोपाध्याय की कविताएं बंगाल में अड्डों की पसंद होती थीं. 200 से अधिक पुस्तक लिखने वाले सुनील गंगोपाध्याय की मृत्यु 78 साल की उम्र में 23 अक्टूबर 2012 को हुई. अब भले ही वो इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं, आज भी लोगों के दिलों में सुनील गंगोपाध्याय मौजूद हैं.
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एसके/एफजेड