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New Delhi, 3 नवंबर . जमनालाल बजाज का नाम India के प्रमुख उद्योगपति, स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी और समाजसेवी के रूप में अग्रणी है. महात्मा गांधी द्वारा ‘अपने पांचवें पुत्र’ कहे जाने वाले जमनालाल ने न केवल बजाज समूह की नींव रखी, बल्कि स्वदेशी आंदोलन, महिला सशक्तीकरण, ग्रामीण विकास और पशु कल्याण जैसे क्षेत्रों में अपनी संपत्ति का उपयोग राष्ट्रहित में किया.
जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवंबर, 1889 को Rajasthan के सीकर जिले के काशी का बास गांव में हुआ था. कनीराम और बिरदीबाई के घर में जन्मे और गरीबी के बावजूद उनकी बुद्धिमत्ता अद्भुत थी. उन्हें मात्र 5 वर्ष की उम्र में वर्धा के धनी सेठ बछराज बजाज ने पुत्र के रूप में गोद ले लिया.
सेठ बछराज, जो ब्रिटिश राज में सम्मानित व्यापारी थे, ने जमनालाल को व्यापार के गुर सिखाए.
मात्र 17 वर्ष की आयु में उन्होंने कारोबार संभाल लिया और एक के बाद एक कंपनियां स्थापित कीं, जिनमें से कई आज बजाज समूह का आधार बनीं. बजाज समूह आज India का प्रमुख औद्योगिक साम्राज्य है, जो ऑटोमोबाइल से लेकर वित्तीय सेवाओं तक फैला हुआ है. जमनालाल ‘ट्रस्टीशिप’ के सिद्धांत पर जीते थे, अर्थात संपत्ति राष्ट्र की अमानत है.
1915 में महात्मा गांधी की India वापसी के बाद जमनालाल का जीवन बदल गया. Ahmedabad के सत्याग्रह आश्रम का दौरा करने पर वे गांधीजी के विचारों से इतने प्रभावित हुए कि अपना जीवन समर्पित कर दिया. उन्होंने अपने कीमती वस्त्रों की होली जलाई, खादी अपनाई और बच्चों को विनोबा भावे के सत्याग्रह आश्रम में पढ़ाया. स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका अविस्मरणीय रही. असहयोग आंदोलन (1920-22), नागपुर झंडा सत्याग्रह, साइमन कमीशन का बहिष्कार (1928), नमक सत्याग्रह (1930) और India छोड़ो आंदोलन (1942) में वे सक्रिय रहे.
डांडी मार्च के दौरान गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद जमनालाल को दो वर्ष की सजा हुई. वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष बने और खादी बोर्ड के चेयरमैन रहे. समाजसेवी के रूप में जमनालाल ने समाज सुधार पर जोर दिया. उन्होंने अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ (1935) की स्थापना की, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का माध्यम बनी. महिला सशक्तीकरण के लिए उन्होंने बाल-विवाह विरोधी अभियान चलाए और विधवाओं के पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया. दलित उत्थान के लिए उन्होंने हरिजन सेवक संघ में योगदान दिया. उन्होंने गौ-रक्षा को अपना जीवन का उद्देश्य बनाया.
उनका 11 फरवरी 1942 को मात्र 52 वर्ष की आयु में वर्धा में निधन हो गया. उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. उन्होंने वर्धा में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना के लिए जमीन दान की, जहां गांधीजी रहे.
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एससीएच/एबीएम