बेंगलुरू, 26 सितंबर . वैश्विक मंच पर इन दिनों भारतीय हॉकी टीम का परचम बुलंद है. पेरिस में लगातार दो ओलंपिक पदक जीतने के बाद हरमनप्रीत सिंह की अगुवाई वाली हॉकी टीम आत्मविश्वास से भरपूर है, जिसकी झलक चीन के मोकी में एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में दिखाई दी.
इस बीच ‘एशियाई हॉकी चैंपियंस ट्रॉफी में भारतीय पुरुष हॉकी टीम के लिए डेब्यू करने वाले 19 वर्षीय गुरजोत सिंह का मानना है कि यह अनुभव उन्हें सुल्तान जोहोर कप और एशिया कप जैसे आगामी टूर्नामेंटों में मदद करेगा.
युवा फॉरवर्ड को साई में ट्रायल के दौरान उनके शानदार प्रदर्शन के बाद जूनियर टीम से यहां खेलने का मौका मिला था. गुरजोत ने एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी 2024 के सभी 7 मैच खेले और हालांकि वह गोल नहीं कर पाए, लेकिन उन्होंने अपनी छाप छोड़ी और मैदान पर टीम के प्रति समर्पण और कड़ी मेहनत दिखाई.
गुरजोत ने इस अनुभव पर कहा, “सीनियर टीम में माहौल बहुत अच्छा है, सभी सीनियर बड़े भाइयों की तरह हैं. एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में मेरा डेब्यू एक स्वप्निल अनुभव था, मैं चीन के खिलाफ खेलने के लिए उत्साहित था. मुझे लगा कि मैं अपने डेब्यू मैच में गोल करूंगा लेकिन भले ही मैं ऐसा नहीं कर सका लेकिन मैंने सर्वश्रेष्ठ दिया.
“खेल से पहले कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने मुझे आश्वस्त किया था कि ज्यादा सोचने या डरने की जरूरत नहीं है. मुझे बस वैसा ही खेलना है जैसा मैं आमतौर पर शिविर में खेलता हूं.”
गुरजोत पंजाब के एक छोटे से गांव हुसैनाबाद से हैं. उनके पिता पास के एक गांव में दूध बेचते और उनकी मां हाउसवाइफ हैं, जबकि उनकी बहनें पढ़ाई कर रही हैं.
बचपन में गुरजोत बहुत शरारती थे. जब वह 6 साल के थे, तब वे एक जानलेवा साइकिल दुर्घटना का शिकार हुए थे. इस दुर्घटना में उनके सिर के पिछले हिस्से में सात टांके लगे थे.
उन्होंने बताया, “दुर्घटना के बाद, कुछ वर्षों तक मुझे थोड़ी कमजोरी रही, लेकिन जब मैं 10 वर्ष का हुआ, तो मैं पूरी तरह से ठीक हो गया और पास के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने लगा. स्कूल में, मैंने देखा कि हॉकी खेलने वाले बच्चों को थोड़ी अधिक स्वतंत्रता मिलती थी.
“वे कक्षा में देर से आते थे और अभ्यास के लिए थोड़ा जल्दी चले जाते थे, इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न इस खेल में अपना हाथ आजमाया जाए.”
2020 तक, गुरजोत को अपने पिता का घर खर्च में हाथ बटाने के लिए एक फुटवियर फैक्ट्री में काम करना पड़ा. वह सुबह अभ्यास करता और रात में काम करता. इन तमाम चुनौतियों को पार करते हुए उन्होंने यहां तक का सफर तय किया.
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एएमजे/आरआर